क़रार देके मुझे और बेक़रार किया
ये आज तुमने मुझे किस तरह से प्यार किया
वो एक शख़्स जिसे मेरी आरज़ू ही न थी
उसी
का ज़िक्र मगर मैंने बार-बार किया
अजब सुकून था उसके फ़रेब में मुझको
न
था यक़ीन मगर फिर भी ऐतबार किया
ग़ज़ब तिलिस्म कि ग़म और ख़ुशी का फ़र्क़ गया
रुला-रुला
के मुझे उसने ख़ुशगवार किया
वो एक रात,मुझे जिसमें नींद आ
जाती
तमाम
उम्र उसी शब का इंतज़ार किया
4.9.2015 - 21.9.2015
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