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Friday 30 April 2010

CHAAR CHAUK SOLAH


                           चार चौक सोलह 


बियर की एक ख़ाली बोतल ,चाय के दो जूठे कप
और वातावरण का बासीपन ,बैरा उठा कर ले गया  !
देखते ही देखते --
फाइव स्टार होटल का तरो-ताज़ा भरा-पूरा कमरा 
मेरे मन के साथ एकदम ख़ाली हो गया !!!!!

कुछ देर पहले ----

इस बिखरे हुए बेतरतीब कमरे में 
सोफे की सिकुड़नों  ,बिस्तर की सिलवटों
कुछ स्पर्श ,कुछ गंध और कुछ आहटों  
कहे-अनकहे शब्दों की ध्वनियों 
कहकहों-खिलखिलाहटों की गूँज
के बीच तुम सबका अहसास सँजोए,
 अकेली कहाँ थी मैं!!


एकाकी बैठी सोच रही हूँ---


चार दिशाएँ अपने सारे पूर्वाग्रह त्याग
कुछ यूँ आ मिलीं कि हमारी चौकड़ी  बन गई !
एक-दूसरे की खूबियाँ और ख़ामियाँ
 स्वीकारते हुए, गलबहियां डाले ,
हम चार पल, चार क़दम साथ चले !
कभी मन्दिर की चौखट चूमी
तो कभी चौगड्डा जमाया !!


हममें से कोई दो होते तो वो बात नहीं होती ,
तीन होते तो भी वो बात नहीं होती ,
चारों होते तो क्या बात होती !!


सोचती हूँ ये सब चार ही क्यों
आठ या दस क्यों नहीं ?
ये ज़िन्दगी भी तो चार दिन की है
शायद इसी लिए !!


जाने-अनजाने हम एक-दूसरे को वो दे गए
जिसे स्वयं से नहीं पाया जा सक्ता
जब-जब हम मिले चार-चौक सोलह हो गए
सोलह आने खरे और पूर्ण !!!

कैसा अद्भुत आनंद था
 इस सहज-सरल और निश्छल सान्निध्य  में !
दुःख इसका नहीं कि हम बिछड़ गए
सुख इसका है कि हम मिले
इतना ही यथेष्ट है !!!
CHEERS !!!!


दीप्ति मिश्र






  नोट –ये कविता फिल्म तनू वेड्स मनू की शूटिंग के दौरान लिखी गई थी  राजेन्द्र गुप्ता ,के के रैना ,नवनी परिहार और मेरी बेबाक दोस्ती ही इस कविता की जन्मदात्री है .

Sunday 28 February 2010

AKSHAR




अक्षर 


लिखते-लिखते 
शब्दों के जाल में 
उलझ गईं हूँ मैं !
शब्द से वाक्य 
वाक्य से अनुच्छेद 
अनुच्छेद से अध्याय 
अध्याय से ग्रन्थ 
तक की यात्रा 
क्यों करनी पड़ती है 
बार-बार मुझे ?
मैनें तो कभी 
कोई शब्द नहीं गढ़ा
फिर क्यों मुझे 
शब्दों से जूझना पड़ा ?
अनुभूति की सीमा में 
अक्षर 'अक्षर' है 
किन्तु अभिव्यक्त होते ही 
'शब्द' बन जाता है
और फिर से 
आरम्भ हो जाती है 
एक नई यात्रा -
शब्द,वाक्य ,अनुछेद 
अध्याय और ग्रन्थ की ! 
काश !!
कोई छीन ले मुझसे 
मेरी सारी अभिव्यक्ति 
और 
 अनुभूत हो मुझे अक्षर 
सिर्फ 
"अक्षर"!!!!!!!!!!

दीप्ति मिश्र