आखि़र   मेरी  वफ़ाओं  का  कुछ  तो सिला मिला
उसको  भी  आज   दोस्त   कोई   बेवफ़ा   मिला 
कहते  थे  लोग  हमसे   ये   दुनिया   फ़रेब   है 
हमको  तो  रास्ते  में  ही   इक  रहनुमा   मिला 
दो पल के तेरे  साथ  ने  क्या  कुछ   नहीं  दिया 
बस ये समझ कि तुझ में ही
सब कुछ छिपा  मिला 
मेरा   नहीं   था  तू  मुझे  मिलना  तुझी  से  था 
लुक-छुप के  खेल में  मेरी
कि़स्मत को क्या  मिला 
बढ़कर  खु़दा  से  क्यों   न  मैं  पूजूँ  तुझे   बता 
जब उसकी  जगह तू  मुझे  बन  कर  खु़दा  मिला 
दीप्ति मिश्र
8.2.95 -14.3.95
दीप्ति मिश्र
8.2.95 -14.3.95
 
 

