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Thursday 17 May 2012

अपूर्ण


अपूर्ण 


हे सर्वज्ञाता ,सर्वव्यापी ,सार्वभौम !
क्या सच में तुम सम्पूर्ण हो ?
"हाँ "कहते हो तो सुनों -

सकल ब्रम्हांड में 
यदि कोई सर्वाधिक अपूर्ण है 
तो वो "तुम" हो !!
होकर भी नहीं हो तुम !!!
बहुत कुछ शेष है अभी ,
बहुत कुछ है जो घटित होना है !
उसके बाद ही तुम्हें सम्पूर्ण होना है!

हे परमात्मा !
मुझ आत्मा को 
विलीन होना है अभी तुममें!
मेरा स्थान रिक्त है अभी तुम्हारे भीतर 
फिर तुम सम्पूर्ण कैसे हुए ?

तुममें समाकर "मैं"
शायद पूर्ण हो जाऊं !
किन्तु "तुम" ?
"तुम" तो तब भी अपूर्ण ही रहोगे 
क्योंकि -
मुझ जैसी -
जानें कितनी आत्माओं की रिक्तता से 
भरे हुए हो "तुम" !

जाने कब पूर्ण रूप से भरेगा 
तुम्हारा ये रीतापन -
ये खालीपन !!
जाने कब ?
जाने कब ?

दीप्ती मिश्र