ग़ज़ल
उम्र का हर साल बस आता रहा जाता रहा
ये हमारे बीच में अब कौन सा नाता रहा
एक मूरत टूट कर बिखरी
मेरे चारों तरफ़
कैसी पूजा, क्या
इबादत,सब भरम जाता रहा
जल रहा था एक दीपक रौशनी
के वास्ते
उसके तल पर ही मगर अँधियार
गहराता रहा
हम बने सीढ़ी मगर हर बार पीछे ही रहे
रख के हम पे पाँव वो ऊचाइयाँ पाता रहा
उम्र के उस मोड़ पर हमको मिलीं आज़ादियाँ
कट चुके थे पंख जब उड़ने का फ़न जाता रहा
ज़िन्दगी की वेदना गीतों में मैनें ढ़ाल दी
गीत मेरे गै़र की धुन में ही वो गाता रहा
दीप्ति मिश्र
20.4.95
दीप्ति मिश्र
20.4.95
1 comment:
Lajawab dipti ji
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