Sunday 10 April 2016

अनछुआ स्पर्ष

एक औरत
जो बरसों से दफ़्न थी
मेरे भीतर !

आज ...
तुम्हारे अनछुए स्पर्ष के अहसास से
जी उठी है !!

जी लूँ कुछ देर मैं भी उसके संग !
भर लूँ आँचल में तुम्हारे सारे रंग !

देंह की देहरी को लांघ -
बह जाऊँ पागल पवन सी ...
तुम्हारी सुगन्ध में !

डूबूँ - उतराऊँ ...
तुम्हारी सॉंसों के आरोह - अवरोह में !

सपने चुनूँ...
सपने बुनूँ...

जब आँख खुल जाएगी
जाग जाऊँगी,जान जाऊँगी

सपनों की अवधि पूरी हो गई है !
मेरे भीतर की औरत फिर सो गई है !!

दीप्ति मिश्र
10.4.2016
8.8pm - 11.35pm
अनछुआ स्पर्ष

एक औरत
जो बरसों से दफ़्न थी
मेरे भीतर !

आज ...
तुम्हारे अनछुए स्पर्ष के अहसास से
जी उठी है !!

जी लूँ कुछ देर मैं भी उसके संग !
भर लूँ आँचल में तुम्हारे सारे रंग !

देंह की देहरी को लांघ -
बह जाऊँ पागल पवन सी ...
तुम्हारी सुगन्ध में !

डूबूँ - उतराऊँ ...
तुम्हारी सॉंसों के आरोह - अवरोह में !

सपने चुनूँ...
सपने बुनूँ...

जब आँख खुल जाएगी
जाग जाऊँगी,जान जाऊँगी

सपनों की अवधि पूरी हो गई है !
मेरे भीतर की औरत फिर सो गई है !!

दीप्ति मिश्र
10.4.2016
8.8pm - 11.35pm

Monday 7 March 2016

अभिव्यक्ति

उसने पुर्ज़े पर कुछ लिखा 
बहुत देर तक सोचता रहा ...
फिर गुड़ी-मुड़ी कर मेरी ओर उछाल दिया
मैनें पुर्ज़े की तहें खोलीं... 
एक-एक शब्द पढ़ा ...
सोचा...
समझा...
फिर सहसा जो लिखा था उसे चूम लिया 
मेरे पास लिखने को कुछ नहीं था ...

4.3.2016
6.20pm

Wednesday 2 March 2016

पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़


पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़ सुनी है सदियों बाद 
सदियों पहले होनी थी जो बात हुई है सदियों बाद

चोर -सिपाही, छुपन - छुपाई , गुड्डे - गुड़ियों वाले खेल
भूले-बिसरे बचपन की सौगात मिली है सदियों बाद

क्या जाने क्यों उलझ गई थी तन से बन्ध कर मन की डोर
सदियों से उलझे रिश्ते की गाँठ खुली है सदियों बाद

मन ही मन दुहराए अक्सर होठों से थे फिर भी दूर 
सहमे-सहमे लफ़्ज़ों को आवाज़ मिली है सदियों बाद

इससे -उससे,जिससे- तिससे जाने कितने मेल-मिलाप
अपने आप से मिलने की दरकार हुई है सदियों बाद 

16.5.2015



वो जो मेरे साथ नहीं है,


वो जो मेरे साथ नहीं है,वो जो मेरे पास नहीं है
बस उसका अहसास है मुझको,और कोई अहसास नहीं है

उसके सुख में खुश होती हूँ ,उसके दुःख में रो लेती हूँ
जिसको मेरे रंजो ग़म का रत्ती भर अाभास नहीं है

प्रेम दीवानी मीरा हूँ मैं वो पत्थर का कृष्न कन्हिया 
उससे क्या फ़रियाद करूँ अब दिल ही जिसके पास नहीं है

बिन पानी के मछली जैसी रह-रह कर क्यों तड़प रही हूँ
एक ज़रा सा दिल टूटा है ऐसा तो कुछ ख़ास नहीं है

सागर-दरिया,बादल-नदिया सब के सब नाकाम हुए हैं
ऐसे कैसे बुझ जाएगी,एेसी-वैसी प्यास नहीं है



20.9.2015 - 18.10.2015 
10.35pm

क़रार देके मुझे

क़रार देके मुझे और बेक़रार किया
ये आज तुमने मुझे किस तरह से प्यार किया

वो एक शख़्स जिसे मेरी आरज़ू ही न थी
उसी का ज़िक्र मगर मैंने बार-बार किया

अजब सुकून था उसके फ़रेब में मुझको
न था यक़ीन मगर फिर भी ऐतबार किया

ग़ज़ब तिलिस्म कि ग़म और ख़ुशी का फ़र्क़ गया
रुला-रुला के मुझे उसने ख़ुशगवार किया

वो एक रात,मुझे जिसमें नींद आ जाती
तमाम उम्र उसी शब का इंतज़ार किया



4.9.2015 - 21.9.2015

इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,


इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,ये इश्क़ कहाँ जाँ छोड़े है
जब जी चाहे ये दिल जोड़े,जब जी चाहे दिल तोड़े है

जो सपना है वो अपना है, जो अपना है वो सपना है
मैं अपना सपना छोड़ भी दूँ पर वो कब मुझको छोड़े है

ये दिल की दुनिया है इसमें नुक़सान-नफ़ा मैं क्या देखूँ
जब इश्क़ किया तो इश्क़ किया कोई सौदेबाज़ी थोड़े है

यूँ दिल के लेने-देने से पहले तुम इतना जान तो लो
इस दिल की अदला-बदली में,कोई टूटे है कोई तोड़े है

दिल टूट गया तो टूट गया और बिखर गया तो बिखर गया
अब टूटी किरचें चुन-चुन कर, क्या जाने क्या वो जोड़े है



17.8.2015 - 23.8.2015
10.20pm