ऐलान कर दिया है --
 तुम्हारे पत्थर दिल का बोझ 
अब और नहीं उठा सकती !
दिमाग़ ने थक कर -
काम करने से इन्कार कर दिया है !
इस चलती-फिरती ज़िन्दा मशीन का 
एक-एक कलपुर्ज़ा मेरी ज़्यादतियों से 
चरमरा कर बग़ावत पर उतर आया है !
चरमरा कर बग़ावत पर उतर आया है !
 स्वार्थ कहता है -
इस जर्जर पिंजर को त्याग दो !
कर्तव्य कहता है रुको -
पहले मुझे पूरा करो !
  
शायद वक़्त आ गया है 
कि मैं अपनी इच्छा-शक्ति को भी  
विश्राम  दूँ और साक्षी भाव से देखूँ
ये "मैं" कर्तव्यपरायण है
ये "मैं" कर्तव्यपरायण है
या स्वार्थी !!!
दीप्ति मिश्र
दीप्ति मिश्र
 
