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Monday, 7 March 2016
Wednesday, 2 March 2016
एक और -
जो सही नहीं है, वो ग़लत भी नहीं है
जो अच्छा नहीं है, वो बुरा भी नहीं है
जो सच नहीं है, वो झूठ भी नहीं है
ये बात अगर तुम्हारी समझ में आ जाए
तो
किसी को समझाने की कोशिश न करना
वरना लोग तुम्हें पागल समझेंगे और ..
तुम्हारी
हर निर्मल-निश्छल भावना को
कस
कर जकड़ दिया जाएगा ...
सही-ग़लत, अच्छे-बुरे और सच-झूठ
की बेड़ियों में।
बना दिया जायगा तुम्हें ...
एक
और सुकरात !
एक
और मीरा
29.2.2016
1.25pm
क्यूपिड
सुनो, ये जो तुम प्रेम का
देवता बन कर
सबको प्यार बॉंटते फिरते हो ,
सबका ख़ालीपन भरते हो ,
क्या मिलता है तुम्हें ??
सन्तुष्टि !!
फिर क्यूँ इतने बेचैन हो तुम ?
सच-सच
बताना
भीतर
से कितने रीते हो तुम ?
तुम
सबके हो ....
कोई
तुम्हारा है क्या ?
प्रेम की धुन में ...
तुमने
सोचा ही नहीं ...
कि
प्रेम बॉंटते-बॉंटते
ख़ुद
ही बँटजाओगे तुम !
और
तुम्हारे पास
ऐसा
कुछ भी नहीं बचेगा
जिसे
तुम अपना कह सको !!
लोग तुम्हारे पास आते हैं
संवेदना
के पुष्प चढ़ाते हैं
तुमसे
प्रेम का अनुदान लेते हैं
और
ह्रदय में नई स्फ़ूर्ति भर
चलदेते
हैं अपने साथी के पास !
तुम
फिर जहॉं के तहॉं ...
अकेले, घनघोर अकेले रह जाते हो
!!
क्यूँ बनना चाहा तुमने देवता ?
अगर
इन्सान ही वने रहते
तो
क्या पता ..
किसी
एक के हो जाते
किसी
एक को पा जाते
एक
हो जाते !!!
15.2.2016
1.50pm
विचार - धारा
मेरी विचारधारा उसकी विचारधारा से
मेल
नहीं खाती....
इस
लिये -
उसने मुझे स्वयं से काट कर अलग कर दिया,
क्योंकि -
उसके साथ उसकी दुनिया है !
जिसके प्रति -
वो जवाबदेह है !
उसकी विचारधारा मेरी विचारधारा से
मेल
नहीं खाती....
किन्तु
मैं उसे स्वयं से काट कर अलग नहीं कर सकी
क्योंकि
मेरी
दुनिया " वो " है
मैं
किसी के प्रति जवाबदेह नहीं !!!
4.11.2015
4.40pm
थोड़ी देर
बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।
मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए
देखती
रही झिलमिलाते हुए तारों को
और
...
उलझाए
रही अपनेआप को
इधर-उधर
की बातों में...
धीरे-धीरे
...
"थोड़ी
देर" सरकते-सरकते
"बहुत
देर" में बदल गई !
झपकी आई ही थी
कि
फ़ोन घनघना उठा..
मैंने
सकपका कर कहा
ह..हलौ
उसने
कहा -
सौरी...
ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ
थोड़ी
देर में कॉल करता हूँ।
सोच रही हूँ ..
ऑंख
खोल दूँ !!
या
...
बंद
ही रहने दूँ !!!!
22.1.2016
11.15am
सीधी बात
लिख चुके हो तुम
वो सब - जो तुम्हें लिखना था
मेरे भाग्य में !
लिख रही हूँ मैं
वो सब - जो मुझे लिखना है
अपने कर्म से !
मिटा दिया है मैंने वो सब -
जो
लिखा था तुमने !
लिख
रही हूँ मैं वो सब -
जो
लिखना है मुझे!
कैसे मिटाओगे तुम वो सब -
जो
अभी लिखा ही नहीं ?
कैसे
मिटाओगे तुम वो सब -
जो
अभी हुआ ही नहीं ?
सुनो ! ऐसा करना ...
मैँ
लिखती रहूँगी तब तक -
जब
तक मैं हूँ!
तुम
मिटाते रहना तब तक -
जब
तक मैं हूँ !!!!
12.8.20015
6.38 pm
सब - कुछ
पुरुष - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ !
स्त्री
- ??
पुरुष
- मैं तुमसे बेइंतिहा प्रेम करता हूँ !
स्त्री
- ........!
पुरुष
- मैं तुमसे सदियों से प्रेम करता हूँ !
स्त्री
- म्..म..मैं प्रभावित हूँ !
पुरुष
- शायद जन्मों से ....!
स्त्री
- सम्मान करती हूँ तुम्हारी भावनाओं का !
पुरुष
- स्वीकार लो !
स्त्री
- स्वीकार लिया !
प्रेम
में प्रेम का विलय ...
प्रेम
ही हो गया दोनों के लिए
"सबकुछ"
फिर
-
दानों
ने प्रेम को आधा-आधा बाँट लिया
स्त्री
के लिए पुरुष - "सब" !!
पुरुष
के लिए स्त्री - "कुछ" !!!
12.7.2015
ब्लैक-बोर्ड
कभी कोरा काग़ज़ हुआ करते थे तुम
संगमरमर की
तरह सफेद ,साफ़ !
स्याही से
तुमने ख़ुद पर
इतने लेख
लिखे
कि स्याह ही
हो गये तुम
और ...
बन गए एक
ब्लैक-बोर्ड !
इस
ब्लैक-बोर्ड पर -
सफ़ेद चौक
से लिखी थीं
मैंने कुछ
ग़ज़लें...
कुछ नज़्में
...
लिखे थे कुछ
नाम !
कुछ सम्बोधन
!
जिसे तुमने
इश्तेहार की
तरह
हर गली,हर नुक्कड़
हर चौराहे
पर लगाया
और ..
ख़ूब नाम
कमाया ?
फिर ....
कमाई का
हिसाब लगाया
कुछ जोड़ा
कुछ घटाया
डस्टर उठाया
और...
पोंछ दिया
वो सब कुछ
जो स्याह
नहीं सफ़ेद था !!
डस्टर से झड़ती हुई डस्ट ने
मुझसे कहा-
मूर्ख ! ये
ब्लैक बोर्ड है
इस पर कोई
रंग नहीं टिकेगा
इसे ब्लैक
ही रहने दो !
मैंने डस्ट समेटी,
अन्जुरी में
भरी
और...
उंगली के
पोर से
ब्लैक-बोर्ड
पर लिख दिया
ब्लैक !!!
16.1.2016
10.20 am
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