Showing posts with label कविता. Show all posts
Showing posts with label कविता. Show all posts

Monday 7 March 2016

अभिव्यक्ति

उसने पुर्ज़े पर कुछ लिखा 
बहुत देर तक सोचता रहा ...
फिर गुड़ी-मुड़ी कर मेरी ओर उछाल दिया
मैनें पुर्ज़े की तहें खोलीं... 
एक-एक शब्द पढ़ा ...
सोचा...
समझा...
फिर सहसा जो लिखा था उसे चूम लिया 
मेरे पास लिखने को कुछ नहीं था ...

4.3.2016
6.20pm

Wednesday 2 March 2016

एक और -



जो सही नहीं है, वो ग़लत भी नहीं है
जो अच्छा नहीं है, वो बुरा भी नहीं है
जो सच नहीं है, वो झूठ भी नहीं है

ये बात अगर तुम्हारी समझ में आ जाए 
तो किसी को समझाने की कोशिश न करना

वरना लोग तुम्हें पागल समझेंगे और ..
तुम्हारी हर निर्मल-निश्छल भावना को 
कस कर जकड़ दिया जाएगा ...
सही-ग़लत, अच्छे-बुरे और सच-झूठ की बेड़ियों में।

बना दिया जायगा तुम्हें ...
एक और सुकरात !
एक और मीरा 

29.2.2016
1.25pm

इतिहास


कल तक मैं वर्तमान थी ...
आज इतिहास हो गई ...
वो इतिहास,जो खो गया 
अनेक इतिहासों के बीच !!
काश कोई ढूंढ ले मुझे भविष्य में
और बन जाऊँ मैँ वर्तमान !!

11.7.2015
1.49 pm

अच्छा - बुरा


तुम बहुत अच्छी हो
मैं तुम्हारे योग्य नहीं
उसने कहा, पलटा
और चला गया....!
तुम बुरे नहीं हो 
मैं कहना चाहती थी
उसने सुना ही नहीं ...!!

23.11.2015
6.6pm

क्यूपिड





सुनो, ये जो तुम प्रेम का देवता बन कर 
सबको प्यार बॉंटते फिरते हो ,
सबका ख़ालीपन भरते हो ,
क्या मिलता है तुम्हें ??
सन्तुष्टि !!

फिर क्यूँ इतने बेचैन हो तुम ?
सच-सच बताना 
भीतर से कितने रीते हो तुम ?
तुम सबके हो ....
कोई तुम्हारा है क्या ?

प्रेम की धुन में ... 
तुमने सोचा ही नहीं ...
कि प्रेम बॉंटते-बॉंटते 
ख़ुद ही बँटजाओगे तुम !
और तुम्हारे पास
ऐसा कुछ भी नहीं बचेगा 
जिसे तुम अपना कह सको !!

लोग तुम्हारे पास आते हैं 
संवेदना के पुष्प चढ़ाते हैं 
तुमसे प्रेम का अनुदान लेते हैं 
और ह्रदय में नई स्फ़ूर्ति भर
चलदेते हैं अपने साथी के पास !
तुम फिर जहॉं के तहॉं ...
अकेले, घनघोर अकेले रह जाते हो !!

क्यूँ बनना चाहा तुमने देवता ?
अगर इन्सान ही वने रहते 
तो क्या पता ..
किसी एक के हो जाते 
किसी एक को पा जाते 
एक हो जाते !!!

15.2.2016
1.50pm

विचार - धारा


मेरी विचारधारा उसकी विचारधारा से
मेल नहीं खाती....
इस लिये -
उसने मुझे स्वयं से काट कर अलग कर दिया,
क्योंकि - 
उसके साथ उसकी दुनिया है !
जिसके प्रति -
वो जवाबदेह है !

उसकी विचारधारा मेरी विचारधारा से
मेल नहीं खाती....
किन्तु मैं उसे स्वयं से काट कर अलग नहीं कर सकी 
क्योंकि
मेरी दुनिया " वो " है
मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं !!!

4.11.2015
4.40pm

थोड़ी देर



बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।

मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए 
देखती रही झिलमिलाते हुए तारों को
और ...
उलझाए रही अपनेआप को 
इधर-उधर की बातों में...
धीरे-धीरे ...
"थोड़ी देर" सरकते-सरकते
"बहुत देर" में बदल गई !

झपकी आई ही थी
कि फ़ोन घनघना उठा..
मैंने सकपका कर कहा 
ह..हलौ 
उसने कहा - 
सौरी... ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ 
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ।

सोच रही हूँ ..
ऑंख खोल दूँ !!
या ...
बंद ही रहने दूँ !!!!

22.1.2016
11.15am

ढ़ाई आखर


सिर्फ़ ढ़ाई आखर सुने
और....
तड़तड़ा कर टूट गए सभी टाँकें !
घाव जो भरा भी नहीं था
फिर से हरा हो गया !!
सुना था ज़हर,ज़हर को काटता है
आज पता चला ...
प्रेम,प्रेम को मारता है !!!

12.2.2016
12.10pm

सपने


मेरे सपने बहुत टूटते थे ..
भर-भर के देखती जो थी !!
अब नहीं टूटते ..
सोना जो छोड़ दिया !!
अरे नहीं ,
सपनों से पीछा नहीं छूटा ,
अब भी देखती हूँ ..
भर-भर के देखती हूँ..
खुली आँखों से ....!!
अब
आनन्द ही आनन्द है
न नींद टूटती
न सपने !

24.7.2015
11.15 AM

सीधी बात



लिख चुके हो तुम 
वो सब - जो तुम्हें लिखना था
मेरे भाग्य में !
लिख रही हूँ मैं
वो सब - जो मुझे लिखना है 
अपने कर्म से !

मिटा दिया है मैंने वो सब -
जो लिखा था तुमने !
लिख रही हूँ मैं वो सब -
जो लिखना है मुझे!

कैसे मिटाओगे तुम वो सब -
जो अभी लिखा ही नहीं ?
कैसे मिटाओगे तुम वो सब -
जो अभी हुआ ही नहीं ?

सुनो ! ऐसा करना ...
मैँ लिखती रहूँगी तब तक -
जब तक मैं हूँ!
तुम मिटाते रहना तब तक -
जब तक मैं हूँ !!!!

12.8.20015
6.38 pm

साथ



वो मेरे साथ है 
क्योंकि -
वो मुझे खोना नहीं चाहता ।
मैं उसके साथ हूँ
क्योंकि -
वो मुझे खोना नहीं चाहता।
मैं क्या चाहती हूँ ?
.....
उसने कभी पूछा ही नहीं ।
अगर पूछता ...
तो बता देती -
मैं भी यही चाहती हूँ
कि तुम -
मुझे खोना न चाहो ....!!

27.10.20015
9.45am

सब - कुछ



पुरुष - मैं तुमसे प्रेम करता हूँ !
स्त्री - ??
पुरुष - मैं तुमसे बेइंतिहा प्रेम करता हूँ !
स्त्री - ........!
पुरुष - मैं तुमसे सदियों से प्रेम करता हूँ !
स्त्री - म्..म..मैं प्रभावित हूँ !
पुरुष - शायद जन्मों से ....!
स्त्री - सम्मान करती हूँ तुम्हारी भावनाओं का !
पुरुष - स्वीकार लो !
स्त्री - स्वीकार लिया !
प्रेम में प्रेम का विलय ...
प्रेम ही हो गया दोनों के लिए 
"सबकुछ"
फिर - 
दानों ने प्रेम को आधा-आधा बाँट लिया
स्त्री के लिए पुरुष - "सब" !!
पुरुष के लिए स्त्री - "कुछ" !!!
 12.7.2015




सज़ा


तुमने अपना गुनाह 
कुबूल ही नहीं किया
तो माफ़ी कैसे मांगते ?
समझती हूँ तुम्हारी मजबूरी 
जाओ मैनें तुम्हें माफ़ किया !!

20.11.2015
12.36am

मौत



सपना जब पूरा हो जाता है
......मर जाता है!
उसका सपना पूरा हो गया
........मैं मर गई !!

20.8.2015
12.25pm

ब्लैक-बोर्ड





कभी कोरा काग़ज़ हुआ करते थे तुम 
संगमरमर की तरह सफेद ,साफ़ !
स्याही से तुमने ख़ुद पर 
इतने लेख लिखे
कि स्याह ही हो गये तुम 
और ...
बन गए एक ब्लैक-बोर्ड !

इस ब्लैक-बोर्ड पर -
सफ़ेद चौक से लिखी थीं
मैंने कुछ ग़ज़लें...
कुछ नज़्में ...
लिखे थे कुछ नाम !
कुछ सम्बोधन !

जिसे तुमने 
इश्तेहार की तरह 
हर गली,हर नुक्कड़
हर चौराहे पर लगाया
और ..
ख़ूब नाम कमाया ?

फिर ....
कमाई का हिसाब लगाया
कुछ जोड़ा
कुछ घटाया
डस्टर उठाया 
और...
पोंछ दिया वो सब कुछ
जो स्याह नहीं सफ़ेद था !!

डस्टर से झड़ती हुई डस्ट ने
मुझसे कहा-
मूर्ख ! ये ब्लैक बोर्ड है
इस पर कोई रंग नहीं टिकेगा
इसे ब्लैक ही रहने दो !

मैंने डस्ट समेटी,
अन्जुरी में भरी
और...
उंगली के पोर से 
ब्लैक-बोर्ड पर लिख दिया
ब्लैक !!!

16.1.2016
10.20 am