Wednesday 2 March 2016

ढ़ाई आखर


सिर्फ़ ढ़ाई आखर सुने
और....
तड़तड़ा कर टूट गए सभी टाँकें !
घाव जो भरा भी नहीं था
फिर से हरा हो गया !!
सुना था ज़हर,ज़हर को काटता है
आज पता चला ...
प्रेम,प्रेम को मारता है !!!

12.2.2016
12.10pm

No comments: