बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।
मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए
देखती
रही झिलमिलाते हुए तारों को
और
...
उलझाए
रही अपनेआप को
इधर-उधर
की बातों में...
धीरे-धीरे
...
"थोड़ी
देर" सरकते-सरकते
"बहुत
देर" में बदल गई !
झपकी आई ही थी
कि
फ़ोन घनघना उठा..
मैंने
सकपका कर कहा
ह..हलौ
उसने
कहा -
सौरी...
ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ
थोड़ी
देर में कॉल करता हूँ।
सोच रही हूँ ..
ऑंख
खोल दूँ !!
या
...
बंद
ही रहने दूँ !!!!
22.1.2016
11.15am
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