Wednesday 2 March 2016

थोड़ी देर



बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।

मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए 
देखती रही झिलमिलाते हुए तारों को
और ...
उलझाए रही अपनेआप को 
इधर-उधर की बातों में...
धीरे-धीरे ...
"थोड़ी देर" सरकते-सरकते
"बहुत देर" में बदल गई !

झपकी आई ही थी
कि फ़ोन घनघना उठा..
मैंने सकपका कर कहा 
ह..हलौ 
उसने कहा - 
सौरी... ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ 
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ।

सोच रही हूँ ..
ऑंख खोल दूँ !!
या ...
बंद ही रहने दूँ !!!!

22.1.2016
11.15am

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