सुनो, ये जो तुम प्रेम का
देवता बन कर
सबको प्यार बॉंटते फिरते हो ,
सबका ख़ालीपन भरते हो ,
क्या मिलता है तुम्हें ??
सन्तुष्टि !!
फिर क्यूँ इतने बेचैन हो तुम ?
सच-सच
बताना
भीतर
से कितने रीते हो तुम ?
तुम
सबके हो ....
कोई
तुम्हारा है क्या ?
प्रेम की धुन में ...
तुमने
सोचा ही नहीं ...
कि
प्रेम बॉंटते-बॉंटते
ख़ुद
ही बँटजाओगे तुम !
और
तुम्हारे पास
ऐसा
कुछ भी नहीं बचेगा
जिसे
तुम अपना कह सको !!
लोग तुम्हारे पास आते हैं
संवेदना
के पुष्प चढ़ाते हैं
तुमसे
प्रेम का अनुदान लेते हैं
और
ह्रदय में नई स्फ़ूर्ति भर
चलदेते
हैं अपने साथी के पास !
तुम
फिर जहॉं के तहॉं ...
अकेले, घनघोर अकेले रह जाते हो
!!
क्यूँ बनना चाहा तुमने देवता ?
अगर
इन्सान ही वने रहते
तो
क्या पता ..
किसी
एक के हो जाते
किसी
एक को पा जाते
एक
हो जाते !!!
15.2.2016
1.50pm
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