Wednesday 2 March 2016

दिल



जितना सीने की कोशिश करती हूँ
उतना ही टूटते जाते हैं टाँके....
अब तो जगह ही नहीं रही ...
कहाँ सुई की नोक धरूँ ?
कहाँ गाँठ बान्धूँ ?
कुछ बचा ही नहीं...
क्या करूँ इस छलनी का ???

16.12.2015
9.46pm

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