पता नहीं-
तुमनें उसे बनाया है
उसने तुम्हें !
किन्तु तुम दोनों ही
एक जैसा खेल खेलते हो
एक दूसरे के साथ !
थोड़ी-सी मिट्टी
थोडा- सा पानी
थोड़ी-सी हवा
थोड़ी-सी आग
और
थोडा-सा आकाश ले
गढ़ते हो तुम
गढ़ते हो तुम
एक खिलौना !
कठपुतली-सा उसे नाचते हो,
अपना मन बहलाते हो,
और जब उकता जाते हो
तब-
मिट्टी को मिट्टी
पानी को पानी
हवा को हवा
आग को आग
और
आकाश को आकाश में
विलीन कर
समाप्त कर देते हो
अपना खेल !!!
ठीक ऐसा ही खेल
वो भी ही खेलता है
तुम्हारे साथ !!
बड़े ही जतन से -
कभी दुर्गा,तो कभी गणपति के रूप में
साकार करता है वो तुम्हें !
फिर होती है -
तुम्हारी " प्राण-प्रतिष्ठा " !!
जब तुम प्रतिष्ठित हो जाते हो ,
तब --
पूजा-अर्चन ,आरती-स्तुति
फल-फूल ,मेवा-मिष्ठान
रोली- अक्षत ,नारियल-सुपारी
दीप-धूप,घंटा-घड़ियाल
के अम्बार लग जाते हैं !
खूब शगल रहता है कुछ दिन तक !!
फिर--
एक निश्चित अवधि के पश्चात
एक निश्चित अवधि के पश्चात
तुम्हारे भक्त
झूमते-नाचते
गाते-बजाते
विसर्जित कर देते हैं
तुम्हें जल में
और साथ ही
विसर्जित हो जाती है
उनकी--
सारी आस्था
सारी श्रद्धा
और सारी भक्ति !!!
सागर किनारे ,नदिया तीरे
बिखरे तुम्हारे छिन्न-भिन्न अंग
साक्षी हैं इस बात के ,कि --
देंह धारण कर ,
तुम भी टूटते हो
तुम भी बिखरते हो
तुम्हारी भी मृत्यु होती है !!!
किन्तु --
तुम-दोनों के खेल में
एक अंतर है -
तुम्हारे द्वारा बनाया गया इन्सान
जीवन में सिर्फ़ एक बार
मृत्यु को प्राप्त होता है
किन्तु
इन्सान द्वारा बनाए गए भगवान
तुम्हारी मृत्यु --
अनंत है ...! अनंत ...!!!
दीप्ति मिश्र