कहाँ दर्द है कुछ ख़बर ही नहीं है
कि अब दर्द का कुछ असर ही नहीं है
मेरे घर में मेरी बसर ही नहीं है
जिसे घर कहूँ ये वो घर ही नहीं है
मैं किस आस्ताँ पर करूँ जा के सजदा
झुके जिसपे सर ऐसा दर ही नहीं है
भरोसा है उसके ही वादे पे मुझको
मुकरने में जिसके कसर ही नहीं है
ये किस मोड़ पर आ गई ज़िन्दगानी
कहानी में ज़ेरो -ज़बर ही नहीं है
दीप्ति मिश्र