Wednesday 2 March 2016

सपने


मेरे सपने बहुत टूटते थे ..
भर-भर के देखती जो थी !!
अब नहीं टूटते ..
सोना जो छोड़ दिया !!
अरे नहीं ,
सपनों से पीछा नहीं छूटा ,
अब भी देखती हूँ ..
भर-भर के देखती हूँ..
खुली आँखों से ....!!
अब
आनन्द ही आनन्द है
न नींद टूटती
न सपने !

24.7.2015
11.15 AM

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