ग़ज़ल
दिल की धड़कन की सुनी
आवाज़ तुमने कब कहो
जान कर बनते रहे अनजान क्यों तुम अब कहो
लफ़्ज़ मेरा एक भी तुम तक पहुँच पाया नहीं
चुप से मेरी हो गए बेचैन
क्यों तुम अब कहो
तुमसे हमने सीख ली है
कुछ न कहने की अदा
कह सके ना तुम कभी जो,
आज तुम वो सब कहो
आज़मा कर क्या करोगे देखना पछताओगे
जाँ हथेली पर लिए हैं
,वार देगें जब कहो
किस लिए झूठी तसल्ली ,किस लिए वादा नया
आ गया हमको यकीं गर क्या करोगे तब कहो
दीप्ति मिश्र
26.4.95 - 1.5.95
दीप्ति मिश्र
26.4.95 - 1.5.95
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