Friday, 12 April 2013

दिल की धडकन


 ग़ज़ल 

दिल की धड़कन की  सुनी आवाज़ तुमने कब कहो
जान  कर बनते  रहे अनजान  क्यों तुम अब कहो

लफ़्ज़  मेरा  एक  भी तुम तक  पहुँच पाया  नहीं
चुप से  मेरी हो  गए  बेचैन क्यों तुम  अब  कहो

तुमसे  हमने  सीख ली है कुछ न  कहने  की अदा
कह सके ना तुम कभी जो, आज तुम वो सब कहो

आज़मा   कर  क्या   करोगे  देखना  पछताओगे
जाँ  हथेली   पर  लिए  हैं ,वार  देगें  जब  कहो

किस  लिए  झूठी  तसल्ली  ,किस लिए वादा नया
आ गया  हमको यकीं गर क्या  करोगे  तब  कहो 

दीप्ति मिश्र 
26.4.95 - 1.5.95 

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