ग़ज़ल
दिल की बात ज़ुबां तक लाएं ये हमको मंज़ूर नहीं
उसको रुसवा कर दें ये तो चाहत का दस्तूर नहीं
समझा कर दीवाने दिल को सब्र किये हम बैठे हैं
लेकिन तुमसे ना मिल पाएं इतने तो मजबूर नहीं
तोड़ के सारी रस्में ऐसी एक कहानी लिख दें हम
लैला - मजनू के क़िस्से भी जितने थे मशहूर नहीं
इस दूरी से शिक़वा क्या
जब दिल की दिल सुन लेता है
लाख जुदा हों जिस्म
हमारे हम तो फिर भी दूर नहीं
बिसरा कर हम इस दुनिया
को अपनी धुन में रहते हैं
लेकिन तुमको ना पहचानें इतने तो मग़रूर नहीं
दीप्ति मिश्र
15.6.95 - 24.6.95
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