ऐसा नहीं कि उनसे मुहब्बत नहीं रही
बस ये हुआ कि साथ की आदत नहीं रही
दुनिया के काम से उसे छुट्टी नहीं मिली
हमको भी उसके वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही
कुछ उसको इस जहाँ का चलन रास आ गया
कुछ अपनी भी वो पहले- सी फ़ितरत नहीं रही
उससे कोई उमीद करें भी तो क्या करें
जिससे किसी तरह की शिकायत नहीं रही
दिल रख दिया है ताक पे हमनें निकाल कर
लो अब किसी भी किस्म की दिक्क़त नहीं रही
दीप्ति मिश्र
3 comments:
@ दुनिया के काम से उन्हें छुट्टी नहीं मिली
हमको भी उनके वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही
अच्छी लगी गज़ल .
दीप्ति मिश्र जी
नमस्कार !
इतनी ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल कही है आपने , पोस्ट को इतना अर्सा भी हो गया लेकिन फिर भी मुझे पहला कमेंट देने का सौभाग्य मिल रहा है । मेरा सौभाग्य !
उनसे कोई उम्मीद करें भी तो क्या भला
जिनसे किसी तरह की शिक़ायत नहीं रही
तमाम अश'आर शानदार हैं । हां , प्यास नहीं बुझी । शे'र ज़्यादा होते तो अच्छा रहता …
बहुत बहुत शुभकामनाएं
- राजेन्द्र स्वर्णकार
धन्यवाद प्रकांत एवं राजेंद्र जी
Post a Comment