Monday 16 August 2010

ऐसा नहीं कि उनसे


ऐसा   नहीं    कि   उनसे    मुहब्बत  नहीं   रही  
बस  ये   हुआ  कि  साथ  की आदत  नहीं    रही 

दुनिया   के   काम   से  उसे   छुट्टी   नहीं   मिली 
हमको   भी     उसके    वास्ते  फ़ुर्सत  नहीं   रही 

कुछ  उसको इस जहाँ  का चलन रास आ  गया 
कुछ  अपनी भी वो पहले- सी फ़ितरत नहीं रही 

उससे   कोई   उमीद   करें   भी   तो   क्या    करें 
जिससे   किसी   तरह  की  शिकायत   नहीं  रही 

दिल   रख   दिया  है ताक  पे हमनें निकाल  कर 
लो  अब किसी  भी किस्म की दिक्क़त  नहीं  रही 

दीप्ति मिश्र 

3 comments:

rajani kant said...

@ दुनिया के काम से उन्हें छुट्टी नहीं मिली
हमको भी उनके वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही


अच्छी लगी गज़ल .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

दीप्ति मिश्र जी
नमस्कार !

इतनी ख़ूबसूरत और मुकम्मल ग़ज़ल कही है आपने , पोस्ट को इतना अर्सा भी हो गया लेकिन फिर भी मुझे पहला कमेंट देने का सौभाग्य मिल रहा है । मेरा सौभाग्य !
उनसे कोई उम्मीद करें भी तो क्या भला
जिनसे किसी तरह की शिक़ायत नहीं रही

तमाम अश'आर शानदार हैं । हां , प्यास नहीं बुझी । शे'र ज़्यादा होते तो अच्छा रहता …

बहुत बहुत शुभकामनाएं
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Unknown said...

धन्यवाद प्रकांत एवं राजेंद्र जी