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Wednesday 2 March 2016

पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़


पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़ सुनी है सदियों बाद 
सदियों पहले होनी थी जो बात हुई है सदियों बाद

चोर -सिपाही, छुपन - छुपाई , गुड्डे - गुड़ियों वाले खेल
भूले-बिसरे बचपन की सौगात मिली है सदियों बाद

क्या जाने क्यों उलझ गई थी तन से बन्ध कर मन की डोर
सदियों से उलझे रिश्ते की गाँठ खुली है सदियों बाद

मन ही मन दुहराए अक्सर होठों से थे फिर भी दूर 
सहमे-सहमे लफ़्ज़ों को आवाज़ मिली है सदियों बाद

इससे -उससे,जिससे- तिससे जाने कितने मेल-मिलाप
अपने आप से मिलने की दरकार हुई है सदियों बाद 

16.5.2015



वो जो मेरे साथ नहीं है,


वो जो मेरे साथ नहीं है,वो जो मेरे पास नहीं है
बस उसका अहसास है मुझको,और कोई अहसास नहीं है

उसके सुख में खुश होती हूँ ,उसके दुःख में रो लेती हूँ
जिसको मेरे रंजो ग़म का रत्ती भर अाभास नहीं है

प्रेम दीवानी मीरा हूँ मैं वो पत्थर का कृष्न कन्हिया 
उससे क्या फ़रियाद करूँ अब दिल ही जिसके पास नहीं है

बिन पानी के मछली जैसी रह-रह कर क्यों तड़प रही हूँ
एक ज़रा सा दिल टूटा है ऐसा तो कुछ ख़ास नहीं है

सागर-दरिया,बादल-नदिया सब के सब नाकाम हुए हैं
ऐसे कैसे बुझ जाएगी,एेसी-वैसी प्यास नहीं है



20.9.2015 - 18.10.2015 
10.35pm

क़रार देके मुझे

क़रार देके मुझे और बेक़रार किया
ये आज तुमने मुझे किस तरह से प्यार किया

वो एक शख़्स जिसे मेरी आरज़ू ही न थी
उसी का ज़िक्र मगर मैंने बार-बार किया

अजब सुकून था उसके फ़रेब में मुझको
न था यक़ीन मगर फिर भी ऐतबार किया

ग़ज़ब तिलिस्म कि ग़म और ख़ुशी का फ़र्क़ गया
रुला-रुला के मुझे उसने ख़ुशगवार किया

वो एक रात,मुझे जिसमें नींद आ जाती
तमाम उम्र उसी शब का इंतज़ार किया



4.9.2015 - 21.9.2015

इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,


इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,ये इश्क़ कहाँ जाँ छोड़े है
जब जी चाहे ये दिल जोड़े,जब जी चाहे दिल तोड़े है

जो सपना है वो अपना है, जो अपना है वो सपना है
मैं अपना सपना छोड़ भी दूँ पर वो कब मुझको छोड़े है

ये दिल की दुनिया है इसमें नुक़सान-नफ़ा मैं क्या देखूँ
जब इश्क़ किया तो इश्क़ किया कोई सौदेबाज़ी थोड़े है

यूँ दिल के लेने-देने से पहले तुम इतना जान तो लो
इस दिल की अदला-बदली में,कोई टूटे है कोई तोड़े है

दिल टूट गया तो टूट गया और बिखर गया तो बिखर गया
अब टूटी किरचें चुन-चुन कर, क्या जाने क्या वो जोड़े है



17.8.2015 - 23.8.2015
10.20pm

जब रूह में कोई आन बसे


जब रूह में कोई आन बसे,तो प्यार नहीं कुछ और भी है 
जब मीरा से घनश्याम मिले,तो प्यार नहीं कुछ और भी है

हर प्रेम कहानी का अपना आगाज़ भी है अंजाम भी है 
जब सागर में नदिया डूबे,तो प्यार नहीं कुछ और भी है

यूँ ध्यान में उसके खो जाना,फिर लौट के खुद को ना पाना 
जब जोत से कोई जोत मिले,तो प्यार नहीं कुछ और भी है

सुर-ताल मिलें संगीत बने,संगीत से बिरह गीत बने 
और अन्तर से चीत्कार उठे,तो प्यार नहीं कुछ और भी है

जब अनगिन चोटें सह-सह कर,इक पत्थर मूरत हो जाए
फिर मूरत में भगवान् दिखे,तो प्यार नहीं कुछ और भी है

2.9.2015 - 8.9.2015

Monday 30 March 2015

मैं दिल से मजबूर हूँ



मैं  दिल से मजबूर हूँ अपने  और  वो दुनियादारी से  
दिल - दुनिया से जूझ रहे  हैं  दोनों  बारी - बारी  से 

रिश्तों के इस  खेल में इक दिन दोनों की ही हार  हुई  
वो  अपनी   चालों  से  हारा , मैं अपनी  दिलदारी से  

दिल से बाहर कर के मुझको अच्छा सा घर सौंप दिया  
उसने  अपना   फ़र्ज़   निभाया  कितनी  ज़िम्मेदारी  से  

मेरा  उसका  रिश्ता  जैसे   ताला  किसी  ख़ज़ाने  का
जिसको  देखो  काट  रहा  है  अपनी-अपनी  आरी से  

चपके -  चुपके  उसने  मेरे   सारे   रिश्ते  बेच   दिए  
जैसे  उसका  रिश्ता  हो  कुछ रिश्तों के  व्यापारी से 

चोरी - चोरी  चुपके - चुपके   सारे   रिश्ते  बेच  दिए  
ख़ूब  कमाई  की  है उसने  ख़ालिस चोर  बाज़ारी  से

दीप्ति मिश्र
20.12.2014