Monday, 7 March 2016
Wednesday, 2 March 2016
पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़
पत्थर दिल ने धड़कन की आवाज़ सुनी है सदियों बाद
सदियों
पहले होनी थी जो बात हुई है सदियों बाद
चोर -सिपाही, छुपन - छुपाई , गुड्डे - गुड़ियों वाले
खेल
भूले-बिसरे
बचपन की सौगात मिली है सदियों बाद
क्या जाने क्यों उलझ गई थी तन से बन्ध कर मन की डोर
सदियों
से उलझे रिश्ते की गाँठ खुली है सदियों बाद
मन ही मन दुहराए अक्सर होठों से थे फिर भी दूर
सहमे-सहमे
लफ़्ज़ों को आवाज़ मिली है सदियों बाद
इससे -उससे,जिससे- तिससे जाने
कितने मेल-मिलाप
अपने
आप से मिलने की दरकार हुई है सदियों बाद
16.5.2015
वो जो मेरे साथ नहीं है,
वो जो मेरे साथ नहीं है,वो जो मेरे पास नहीं है
बस उसका अहसास है मुझको,और कोई अहसास नहीं है
उसके सुख में खुश होती हूँ ,उसके दुःख में रो लेती
हूँ
जिसको
मेरे रंजो ग़म का रत्ती भर अाभास नहीं है
प्रेम दीवानी मीरा हूँ मैं वो पत्थर का कृष्न कन्हिया
उससे
क्या फ़रियाद करूँ अब दिल ही जिसके पास नहीं है
बिन पानी के मछली जैसी रह-रह कर क्यों तड़प रही हूँ
एक
ज़रा सा दिल टूटा है ऐसा तो कुछ ख़ास नहीं है
सागर-दरिया,बादल-नदिया सब के सब
नाकाम हुए हैं
ऐसे
कैसे बुझ जाएगी,एेसी-वैसी
प्यास नहीं है
20.9.2015 - 18.10.2015
10.35pm
क़रार देके मुझे
क़रार देके मुझे और बेक़रार किया
ये आज तुमने मुझे किस तरह से प्यार किया
वो एक शख़्स जिसे मेरी आरज़ू ही न थी
उसी
का ज़िक्र मगर मैंने बार-बार किया
अजब सुकून था उसके फ़रेब में मुझको
न
था यक़ीन मगर फिर भी ऐतबार किया
ग़ज़ब तिलिस्म कि ग़म और ख़ुशी का फ़र्क़ गया
रुला-रुला
के मुझे उसने ख़ुशगवार किया
वो एक रात,मुझे जिसमें नींद आ
जाती
तमाम
उम्र उसी शब का इंतज़ार किया
4.9.2015 - 21.9.2015
इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,
इन्कार करूँ,इक़रार करूँ,ये इश्क़ कहाँ जाँ छोड़े
है
जब जी चाहे ये दिल जोड़े,जब जी चाहे दिल तोड़े है
जो सपना है वो अपना है, जो अपना है वो सपना है
मैं
अपना सपना छोड़ भी दूँ पर वो कब मुझको छोड़े है
ये दिल की दुनिया है इसमें नुक़सान-नफ़ा मैं क्या देखूँ
जब
इश्क़ किया तो इश्क़ किया कोई सौदेबाज़ी थोड़े है
यूँ दिल के लेने-देने से पहले तुम इतना जान तो लो
इस
दिल की अदला-बदली में,कोई
टूटे है कोई तोड़े है
दिल टूट गया तो टूट गया और बिखर गया तो बिखर गया
अब
टूटी किरचें चुन-चुन कर, क्या
जाने क्या वो जोड़े है
17.8.2015 - 23.8.2015
10.20pm
जब रूह में कोई आन बसे
जब रूह में कोई आन बसे,तो प्यार नहीं कुछ और
भी है
जब मीरा से घनश्याम मिले,तो प्यार नहीं कुछ और भी है
हर प्रेम कहानी का अपना आगाज़ भी है अंजाम भी है
जब
सागर में नदिया डूबे,तो
प्यार नहीं कुछ और भी है
यूँ ध्यान में उसके खो जाना,फिर लौट के खुद को ना पाना
जब
जोत से कोई जोत मिले,तो
प्यार नहीं कुछ और भी है
सुर-ताल मिलें संगीत बने,संगीत से बिरह गीत बने
और
अन्तर से चीत्कार उठे,तो
प्यार नहीं कुछ और भी है
जब अनगिन चोटें सह-सह कर,इक पत्थर मूरत हो जाए
फिर
मूरत में भगवान् दिखे,तो
प्यार नहीं कुछ और भी है
2.9.2015 - 8.9.2015
एक और -
जो सही नहीं है, वो ग़लत भी नहीं है
जो अच्छा नहीं है, वो बुरा भी नहीं है
जो सच नहीं है, वो झूठ भी नहीं है
ये बात अगर तुम्हारी समझ में आ जाए
तो
किसी को समझाने की कोशिश न करना
वरना लोग तुम्हें पागल समझेंगे और ..
तुम्हारी
हर निर्मल-निश्छल भावना को
कस
कर जकड़ दिया जाएगा ...
सही-ग़लत, अच्छे-बुरे और सच-झूठ
की बेड़ियों में।
बना दिया जायगा तुम्हें ...
एक
और सुकरात !
एक
और मीरा
29.2.2016
1.25pm
क्यूपिड
सुनो, ये जो तुम प्रेम का
देवता बन कर
सबको प्यार बॉंटते फिरते हो ,
सबका ख़ालीपन भरते हो ,
क्या मिलता है तुम्हें ??
सन्तुष्टि !!
फिर क्यूँ इतने बेचैन हो तुम ?
सच-सच
बताना
भीतर
से कितने रीते हो तुम ?
तुम
सबके हो ....
कोई
तुम्हारा है क्या ?
प्रेम की धुन में ...
तुमने
सोचा ही नहीं ...
कि
प्रेम बॉंटते-बॉंटते
ख़ुद
ही बँटजाओगे तुम !
और
तुम्हारे पास
ऐसा
कुछ भी नहीं बचेगा
जिसे
तुम अपना कह सको !!
लोग तुम्हारे पास आते हैं
संवेदना
के पुष्प चढ़ाते हैं
तुमसे
प्रेम का अनुदान लेते हैं
और
ह्रदय में नई स्फ़ूर्ति भर
चलदेते
हैं अपने साथी के पास !
तुम
फिर जहॉं के तहॉं ...
अकेले, घनघोर अकेले रह जाते हो
!!
क्यूँ बनना चाहा तुमने देवता ?
अगर
इन्सान ही वने रहते
तो
क्या पता ..
किसी
एक के हो जाते
किसी
एक को पा जाते
एक
हो जाते !!!
15.2.2016
1.50pm
विचार - धारा
मेरी विचारधारा उसकी विचारधारा से
मेल
नहीं खाती....
इस
लिये -
उसने मुझे स्वयं से काट कर अलग कर दिया,
क्योंकि -
उसके साथ उसकी दुनिया है !
जिसके प्रति -
वो जवाबदेह है !
उसकी विचारधारा मेरी विचारधारा से
मेल
नहीं खाती....
किन्तु
मैं उसे स्वयं से काट कर अलग नहीं कर सकी
क्योंकि
मेरी
दुनिया " वो " है
मैं
किसी के प्रति जवाबदेह नहीं !!!
4.11.2015
4.40pm
थोड़ी देर
बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।
मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए
देखती
रही झिलमिलाते हुए तारों को
और
...
उलझाए
रही अपनेआप को
इधर-उधर
की बातों में...
धीरे-धीरे
...
"थोड़ी
देर" सरकते-सरकते
"बहुत
देर" में बदल गई !
झपकी आई ही थी
कि
फ़ोन घनघना उठा..
मैंने
सकपका कर कहा
ह..हलौ
उसने
कहा -
सौरी...
ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ
थोड़ी
देर में कॉल करता हूँ।
सोच रही हूँ ..
ऑंख
खोल दूँ !!
या
...
बंद
ही रहने दूँ !!!!
22.1.2016
11.15am
सीधी बात
लिख चुके हो तुम
वो सब - जो तुम्हें लिखना था
मेरे भाग्य में !
लिख रही हूँ मैं
वो सब - जो मुझे लिखना है
अपने कर्म से !
मिटा दिया है मैंने वो सब -
जो
लिखा था तुमने !
लिख
रही हूँ मैं वो सब -
जो
लिखना है मुझे!
कैसे मिटाओगे तुम वो सब -
जो
अभी लिखा ही नहीं ?
कैसे
मिटाओगे तुम वो सब -
जो
अभी हुआ ही नहीं ?
सुनो ! ऐसा करना ...
मैँ
लिखती रहूँगी तब तक -
जब
तक मैं हूँ!
तुम
मिटाते रहना तब तक -
जब
तक मैं हूँ !!!!
12.8.20015
6.38 pm
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