सोचती हूँ कि मैं सोचना छोड़ दूँ
या तो फिर सोच की सब हदें तोड़ दूँ
जिस तरफ़ एक तूफ़ान उठने को है
उस तरफ़ अपनी कश्ती का रुख़ मोड़ दूँ
गर मुहब्बत न रिश्तों की मोहताज हो
सारे रिश्ते यहीं - के - यहीं तोड़ दूँ
टूट कर चाहने का मैं क्या दूँ सिला
तुम मुझे तोड़ दो, मैं तुम्हे जोड़ दूँ
मुझ से आजिज़ हैं सब ,ख़ुद से आजिज़ हूँ मैं
क्या करूँ ख़ुद को मैं अब कहाँ छोड़ दूँ
दीप्ति मिश्र
4 comments:
kya kehne hai wahhhh
kya kehne hai wahhhh
kya kehne hai wahhhh
Shukriya vikas ji.
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