वो एक दर्द जो मेरा भी है , तुम्हारा भी
वही सज़ा है मगर है वही सहारा भी
तेरे बग़ैर कोई पल गुज़र नहीं पाता
तेरे बग़ैर ही इक उम्र को गुज़ारा भी
तुम्हारे साथ कभी जिसने बेवफ़ाई की
किसी तरह न हुआ फिर वो दिल हमारा भी
तेरे सिवा न कोई मुझसे जीत पाया था
तुझी से मात मिली है मुझे दुबारा भी
अभी - अभी तो जली हूँ , अभी न छेड़ मुझे
अभी तो राख में होगा कोई शरारा भी
दीप्ति मिश्र
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