कब  से  अपनी खोज  में  हूँ  मुब्तला मैं
कोई   बतलाए   कहाँ   हूँ   गुमशुदा   मैं
देखती हूँ   जब  भी  आईने  में ख़ुद  को
सोचती    हूँ   कौन   हूँ   नाआशना   मैं
ये    नहीं   वो   भी   नहीं   कोई   नहीं   ना
ना-नहीं का मुस्तकिल इक  सिलसिला मैं 
कितने   टुकड़ों   में  अकेली  जी  रही  हूँ
मैं ही मंज़िल , मैं ही रस्ता , फ़ासला   मैं
वक़्त   के  काग़ज़ पे ख़ुद को लिख रही हूँ
शायराना    ज़िन्दगी   का   फ़लसफ़ा   मैं
दीप्ति मिश्र  

 
 











