Wednesday 2 March 2016

ब्लैक-बोर्ड





कभी कोरा काग़ज़ हुआ करते थे तुम 
संगमरमर की तरह सफेद ,साफ़ !
स्याही से तुमने ख़ुद पर 
इतने लेख लिखे
कि स्याह ही हो गये तुम 
और ...
बन गए एक ब्लैक-बोर्ड !

इस ब्लैक-बोर्ड पर -
सफ़ेद चौक से लिखी थीं
मैंने कुछ ग़ज़लें...
कुछ नज़्में ...
लिखे थे कुछ नाम !
कुछ सम्बोधन !

जिसे तुमने 
इश्तेहार की तरह 
हर गली,हर नुक्कड़
हर चौराहे पर लगाया
और ..
ख़ूब नाम कमाया ?

फिर ....
कमाई का हिसाब लगाया
कुछ जोड़ा
कुछ घटाया
डस्टर उठाया 
और...
पोंछ दिया वो सब कुछ
जो स्याह नहीं सफ़ेद था !!

डस्टर से झड़ती हुई डस्ट ने
मुझसे कहा-
मूर्ख ! ये ब्लैक बोर्ड है
इस पर कोई रंग नहीं टिकेगा
इसे ब्लैक ही रहने दो !

मैंने डस्ट समेटी,
अन्जुरी में भरी
और...
उंगली के पोर से 
ब्लैक-बोर्ड पर लिख दिया
ब्लैक !!!

16.1.2016
10.20 am


बदलाव



नहीं !!
बिलकुल भी नहीं बदले हो तुम !
बदला है मेरा नज़रिया !!
देखा था मैंने तुम्हें,
ठीक वैसा-
जैसा देखना चाहा था ।
देख रही हूँ अब तुम्हें,
ठीक वैसा-
जैसे तुम हो ।
कोई शिक़ायत नहीं,
कोई गिला नहीं ।
चलो आगे बढ़ते हैं
अपने-अपने रास्ते !!

25.7.2015
2.15 pm

फेसबुक Facebook





सुनो !
ये मेरा दिल है
तुम्हारा फेसबुक अकाउंट Facebook account नहीं ,
कि जब चाहा लौगइन login किया
और जब चाहा लौगआउट logout हो गए
पहले तो-
फ्रेंड रिक्वेस्ट friend request भेज-भेज कर
नाक में दम कर दी ।
अब-जब एक्सेप्ट accept कर ली
तो कहते हो -
अन्फ्रेंड unfriend कर दो..
सिर्फ इस लिए 
कि मैं तुम्हारे स्टेटस अपडेट्स status update को
लाइक likeनहीं करती।
तुम्हारी पोस्ट post को
शेयर share नहीं करती।
अपनी वॉल wall पर लिखने की परमीशन नहीं देती।
क्या होगा अन्फ्रेंड unfriend करने से ?
दिल से जाओगे नहीं तुम..!
फिर क्या करूँ ...?
एक आइडिया है -
क्यों न मैं तुम्हें 
सीधे ब्लॉक block ही कर दूँ 
हर दिशा,हर जगह से
ठीक है न ?
बोलो
है न ठीक !!

24.10.2015
1.55pm

दृश्य



चलती हुई रेल की खिड़की से
गतिमान दृश्यों को देख कर -
याद आ जाते हैं वो लोग - 
जो आपकी ज़िन्दगीें में -
अचानक आ जाते हैं ..!
जाने के लिए ...!

ये आते तो तपाक से हैं
लेकिन जाते - जाते
ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं
कि लाख चाहने पर भी
नहीं मिटा पाते आप ...
बस देखते रह जाते हैं 
उन्हें आखों से ओझल होते हुए
बेबस !! चुपचाप !!!


12.17pm
8.11.2015
सुविधा एक्सप्रेस

दिल



जितना सीने की कोशिश करती हूँ
उतना ही टूटते जाते हैं टाँके....
अब तो जगह ही नहीं रही ...
कहाँ सुई की नोक धरूँ ?
कहाँ गाँठ बान्धूँ ?
कुछ बचा ही नहीं...
क्या करूँ इस छलनी का ???

16.12.2015
9.46pm

कॉपी - पेस्ट




हम दोनों पीठ से पीठ जोड़े
अपना-अपना टैब लिए बैठे थे
आपस में बातें हो रहीं थीं
और टैब पर चैट !
अचानक वो उठा -
और हाथ धोने लगा ...

मैनें पूछा - क्या हुआ ?
उसने मुझे तो जवाब नहीं दिया
मन ही मन बुदबुदाया ..
छूटता ही नहीं ..!!
मैनें झाल्ला कर पूछा -
क्या नहीं छूटता ?
हुआ क्या है ?

उसने पलट कर कहा -
कॉपी - पेस्ट करती हो ?
हाँ करती हूँ क्यों ?
मैनें कुछ कॉपी किया था 
पेस्ट नहीं कर सका ...!!
उसने कहा ।

तो ? तो क्या हुआ ?
मैनें भनभनाते हुए पूछा
उसने कहा -
ऐसा लग रहा है जैसे...
ऊँगली में ही चिपक के रह गया है
छूटता ही नहीं !!
.......
पता नहीं उसने क्या समझा ?
क्या जाना ?
मुझे एक बात 
अच्छी तरह समझ में आ गई 
कि कॉपी से पहले 
पेस्ट की जगह निश्चित होनी चाहिए
वर्ना....
कॉपी ज़हन पर पेस्ट हो जाती है !!!

18.7.2015
1.26 am

कम्यूनीकेशन गैप



बहुत बातूनी थे दोनों,
बड़ी लम्बी-लम्बी बातें..
घंटो बतियाते थे -
न दिन देखते न रात !
हज़ारों सवाल - हज़ारों जवाब
सावल वो -
जिनका जवाब नदारद!
जवाब वो -
जिनका सवाल ही न था!
एक दिन -
एक ने सही सवाल का 
सही जवाब दे दिया ...
अब दोनों चुप हैं
और सोच रहे हैं..
क्यों आ गया हमारे बीच 
कम्यूनीकेशन गैप !!

13.2015