हम बुरे हैं अगर तो बुरे ही भले ,अच्छा बनने का कोई इरादा नहीं
साथ लिक्खा है तो साथ निभ जाएगा ,अब निभाने का कोई भी वादा नहीं
क्या सही क्या ग़लत सोच का फेर है ,एक नज़रिया है जो बदलता भी है
एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह फ़र्क सच-झूठ में कुछ ज़ियादा नहीं
रूह का रुख़ इध जिस्म का रुख़ उधर अब ये दोनों मिले तो मिलें किसतरह
रूह से जिस्म तक जिस्म से रूह तक रास्ता एक भी सीधा-सादा नहीं
रूह से जिस्म तक जिस्म से रूह तक रास्ता एक भी सीधा-सादा नहीं
जो भी समझे समझता रहे ये जहाँ,अपने जीने का अपना ही अंदाज़ है
ज़िन्दगी अब तू ही कर कोई फ़ैसल ,अपनी शर्तों पे जीने की क्या है सज़ा
तेरे हर रूप को हौसले से जिया पर कभी बोझ सा तुझको लादा नहीं
तेरे हर रूप को हौसले से जिया पर कभी बोझ सा तुझको लादा नहीं
दीप्ति मिश्र
6.12.2000 - 27.8.2000
6.12.2000 - 27.8.2000
No comments:
Post a Comment