CHAHAT
चाहत
तुम चाहते हो कि 'मैं'
तुम्हें तुम्हारे लिए चाहूँ
क्यों भला ?
क्या कभी 'तुमने' मुझे
मेरे लिए चाहा ?
नहीं ना !!
दरअसल ये चाहने और ना चाहने
की ख्वाहिश ही बेमानी है !
बा- मानी है तो बस 'चाहत'
मेरी चाहत
तुम्हारी चाहत
या फिर --
किसी और की चाहत ....
दीप्ति मिश्र
6.8.2005
2 comments:
तुम चाहते हो कि "मैं"
तुम्हें तुम्हारे लिए चाहूँ
क्यों भला ?
क्या कभी "तुमने " मुझे
मेरे लिए चाहा ??
नहीं ना !!
दरअसल ये चाहने और ना चाहने
की ख्वाहिश ही बेमानी है !
बा- मानी है तो बस "चाहत "
मेरी चाहत
तुम्हारी चाहत
या फिर --
किसी और की चाहत !!!!
kyaa kahne dipti ji....nazm sochne pe majboor karti hai ...zindaabaad
बहुत-बहुत शुक्रिया वीजेन्द्र जी .
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