Wednesday 27 January 2010

CHAHAT









चाहत 



तुम चाहते हो कि 'मैं'
तुम्हें तुम्हारे लिए  चाहूँ 
क्यों भला ?
क्या कभी 'तुमने' मुझे
मेरे  लिए चाहा ?
नहीं ना !!
दरअसल ये चाहने और ना चाहने 
की ख्वाहिश ही बेमानी है !
बा- मानी है तो बस 'चाहत'
मेरी चाहत 
तुम्हारी चाहत 
या फिर --
किसी और की चाहत ....


दीप्ति मिश्र 
6.8.2005

2 comments:

vijendra sharma said...

तुम चाहते हो कि "मैं"
तुम्हें तुम्हारे लिए चाहूँ
क्यों भला ?
क्या कभी "तुमने " मुझे
मेरे लिए चाहा ??
नहीं ना !!

दरअसल ये चाहने और ना चाहने
की ख्वाहिश ही बेमानी है !
बा- मानी है तो बस "चाहत "
मेरी चाहत
तुम्हारी चाहत
या फिर --
किसी और की चाहत !!!!


kyaa kahne dipti ji....nazm sochne pe majboor karti hai ...zindaabaad

Unknown said...

बहुत-बहुत शुक्रिया वीजेन्द्र जी .