Monday 11 January 2010

SWAYAMSIDDHAA


स्वयंसिद्धा

बहुत अल्हड़, बहुत  चंचल
बहुत खिलंदड़ थी
वो नन्ही- सी लहर  !
लहराती -बलखाती
छलकती -थिरकती हुई
वो आती और ...
सागर -तट की सारी सीमाएँ तोड़
दूर तक फैल कर बिखर जाती !

रेत पर बने -
छोटे-बड़े पाँवों के निशान ,
हरे-भरे पेंड़-पौधे,
खिले-अधखिले
फूल -पत्ते ,
शंख - सीपियाँ ,
खुला - गगन ,
झूमता - पवन
बहुत भाते थे उसे !

इन सबके साथ
खेलना चाहती थी वो !
कुछ  पल  मुक्त हो ,
जीना  चाहती  थी  वो !

इधर ...
बड़े ही जतन से
दौड़ती - भागती
हाँफती - काँपती
वो किनारे तक आती
उधर ...
सौम्य - शांत सागर  की
विशाल भुजाएँ...समेट लेतीं उसे
अपनी गहराइयों में !!
दोनों ही हठी थे
सो न इसका आना रुकता
न ही उसका ले जाना !

सागर की अथाह - अँधेरी
ठिठुरन भरी गहराइयों में
जब वो थक कर निढ़ाल पड़ी होती
और स्वर्णिम प्रभात की गुनगुनी किरणें
सारे अँधेरे और शीत को चीर कर
उसे हौले से छूतीं .....
तो छण भर  में
सारा - का - सारा आलस्य
उड़नछू हो जाता ---
ये ---जा -- वो---जा --
और आ जाती सागर की सतह पर !

सिन्दूरी- सूरज का
नर्म -गर्म स्पर्श पाते ही
खिल उठती वो !
जगमगा उठता उसका पोर - पोर !

नन्ही- सी लहर का ये
चमचमाता - लजाता रूप
सूरज का मन मोह लेता !!!
खूब ठिठोली करता सूरज भी
उसके साथ 
कभी बादलों में छुप जाता,
            तो लहर उदास हो सहेम जाती               
कभी प्रचंड अग्नि बरसाता,
           तो तिलमिला कर तमतमा उठती ...    

एक दिन यों ही हँसी - हँसी  में
सूरज पूछ बैठा _
मेरा इस तरह सताना ,
तुम्हे बुरा नहीं लगता ?
लहर __नहीं !
सूरज __क्यों  ?
लहर __क्योंकी तुम मुझे अच्छे लगते हो !
सूरज __अच्छा ! क्यों  ?
लहर __तुम्हारे सान्निध्य से मैं निखर जाती हूँ !
सूरज __क्यों ?
लहर __तुमसे मुझे उत्साह ,स्फूर्ति
और उमंग मिलती है !
सूरज __ क्यों ?
लहर __तुम्हारा स्पर्श -
मेरे अंतस को स्पंदित करता है !
सूरज __क्यों ?
लहर __मुझे तुमसे प्रेम हो गया है !
सूरज __पागल हो गई हो क्या ?
लहर __यही समझ लो !!
सूरज __प्रेम का अर्थ समझती हो ?
लहर __समझती हूँ !
सूरज __बताओ तो सही ---
लहर __नहीं ! पहले तुम बताओ ,
तुमने तो दुनिया देखी है ,
बहुतों ने प्रेम किया होगा तुमसे !
सुनूँ तो सही क्या है ,
तुम्हारे प्रेम की परिभाषा ?
सूरज __समझ पाओगी ?
लहर __कोशिश करुँगी !
सूरज __प्रेम का अर्थ है --
"स्व" का विसर्जन !!!
लहर __इसमें नया क्या है ?
ये तो मुझे पहले से ही पता है !!
सूरज __अ ...च ..छा !! कब से ???
लहर __जब से  "स्व " को  जाना !
सूरज __कब जाना ?
लहर __जब पहली बार प्रेम हुआ !!!
सूरज __पहली बार ........?
अभी तो तुमने कहा था --
तुम मुझ से प्यार करती हो !!!!
लहर __हाँ तो  ---?
सूरज __तो क्या प्रेम अनेक से होता है ?
लहर __जब "एक" से "अनेक" प्रेम कर सकते   हैं
तो "एक" "अनेक" से क्यों नहीं ???
सूरज __तर्क तो ठीक है लेकिन ----
लहर __लेकिन क्या ? प्रेम में -
 किन्तु -परन्तु ,
उचित -अनुचित 
कुछ  नहीं होता !!!
सूरज __फिर क्या होता है ?
लहर __प्रेम सिर्फ "प्रेम "होता है
और कुछ नहीं !!!
सूरज __अच्छा आगे कहो  --
फिर क्या हुआ ?

लहर __फिर ......
जब -जब प्रेम
पराकाष्ठा पर पहुंचा ..
मैं "समर्पित" हुई,"विसर्जित" हुई
और "परिवर्तित" हो गई !!!
सूरज __मैं समझा नहीं ..!!!!
ज़रा ठीक से समझाओ !
लहर __समझ पाओगे ?
सूरज __कोशिश करूँगा !
लहर __तो सुनो ----

मैं "जल" हूँ !
शीत से प्रेम हुआ _हिम बन गई
गति से प्रेम हुआ _नदी बन गई
सागर से  प्रेम हुआ  ...
सूरज __तो सागर में विलीन हो गईं
यही ना ??
लहर __हाँ !!!!
सूरज __फिर .....?
लहर __फिर ...एक नशा ! एक खुमार !
एक जादू ! एक जूनून !
और एक लम्बी नींद  ......
सूरज __फिर क्या हुआ ???
लहर __फिर हुआ ये -
कि मेरी नींद टूट गई !
सूरज __क्या मतलब ?
लहर __मतलब ये --
कि मेरी आँखे खुल गईं !!
सूरज __यानी ??
लहर __यानी मुझे महसूस हुआ
कि मुझमें  "अपने होने का अहसास "
अभी बाक़ी है !!!
सूरज __तो क्या तुम्हारा "समर्पण"
अधूरा था ??
लहर __ये भी तो हो सकता    है 
कि सागर का "स्वीकार" अधूरा हो !!
सूरज __ऐसा भी कहीं होता है ??
लहर __ऐसा ही तो होता है !!
सूरज __तो क्या--
"महामिलन","उत्सर्ग",
"विसर्जन","समागम"
सब अपूर्ण हैं ???
लहर __नहीं !सब पूर्ण हैं !!
लेकिन पूर्णता के बाद
अपूर्णता का
आरम्भ होता है !!
सूरज __वो कैसे ??


लहर __वो ऐसे  --
कि  "जाग्रत अस्तित्व" का
सिर्फ रूप बदलता है
"सत्ता" समाप्त नहीं होती !!
और जब तक अस्तित्व है
"अतृप्ति" है !!!

सूरज __अजीब बात है !
सागर में हो कर भी
अतृप्त हो तुम ???
लहर __"मैं" सागर में हूँ
इसी लिए तो अतृप्त हूँ
वरना "सागर" न हो जाती !!!
क्या करूँ--
मेरा "मैं" मुझसे विलग ही नहीं होता !!!

स्तब्ध सूरज ठगा सा
जहाँ  - का - तहाँ  खड़ा रह गया
कुछ पल को सब कुछ रुक गया !!!!!!

सूरज __अद -भु  -त  हो  तुम्म !!!!!!!!

लहर  - चुप !
सूरज __अभिभूत  हूँ  मैं  !
लहर -चुप !
सूरज __सम्मोहित - हो - रहा - हूँ - मैं  !!
लहर -चुप !
सूरज __आसक्त - हो-  रहा - हूँ - मैं !!!
लहर - चुप !
सूरज __ये - क्या - हो  रहा - है - मुझे ???

लहर __ प्रेम  !!!!!!!!
सूरज __"प्रेम" ?
लहर __हाँ  "प्रेम" !!
आओ स्वीकारो मुझे --
सूरज __मेरे स्वीकारने का
परिणाम जानती हो ?
लहर __जानती हूँ !
सूरज __क्या ?
लहर __यही कि हम
एक -दूसरे का वरण करेंगे !
सूरज __"मृत्यु " को वरोगी तुम ?
लहर __नहीं !
एक बार फिर "जी जाऊँगी " !!
सूरज __सोच लो--
लहर __सोच लिया !

फिर क्या था --
प्रेमी ने प्रेयसी को
आलिंगन में भर लिया
एकाकार हो गए दोनों -
नन्ही -सी लहर का पोर - पोर
प्रेम में पगने लगा
कतरा-कतरा  वाष्प बन
आकाश में उड़ने लगा !!!!

"अद्भुत "-"अन्वर्च्नीय "
"महामिलन " ऐसा था कि
सूरज तो सूरज ही रहा
पर नन्ही- सी लहर
ऐसी बदली कि
"बदली" हो गई !!

नया जन्म , नया रूप !
नई आशा ! नई दिशा !!!
भीतर से भरी -भरी
प्रेम में रची - बसी
मुक्ताकाश में विचरती
सोचती थी कि किधर जाऊँ ?

तभी किसी ने पुछा--
अब तक कहाँ थीं तुम ???
देखा तो -
बंजर धरती का
छोटा- सा टुकड़ा
टकटकी बाँधे
उसकी बाट जोह रहा था !

अनायास ही वो कह उठी-
राह में थी
ध रती__आने में इतनी देर क्यों कि ?
बदली __यात्रा बहुत लम्बी थी...
धरती __बस ! अब आन मिलो....
इतना सुनना था कि-
झर-झरा कर झर गई
नन्ही- सी बदली !
पता नहीं ये "जल" था या "आँसू"
धीरे -धीरे----
तृप्त होने और करने का भेद
मिट गया !!!!!!!!!!!!!

बंजर धरती स्निग्ध हुई !
बीज प्रस्फुटित हुए !
कोपलें फूटीं !
सब का सब हरिया गया !
एक  "मैं" अपनी परिधि तोड़
असंख्य में समा गया !!!!!

दीप्ति मिश्र

3 comments:

Unknown said...

sorry
too long
will read it some other time
:)

LIFE MUDRAS said...

A very good thought process, but a very long one.

quesarasara said...

Hmm kafi lambi but shows the characteristics of all the elements air-water-fire and earth in various personalities- seen from a pure analytical perspective this details out the interaction chracteristics in the various elements very nicely! For instance Water& earth - when the the wtaer element spell bound by the stable earth yearns to be with it but soon finds it restricting to its very nature!! Good depiction!