ग़ज़ल
क्या बतलाएं किसके दिल
में क्या-क्या राज़ छुपा देखा है
हर इन्सां के दिल में हमनें इक तूफ़ान रुका देखा है
तूफ़ां से जो जा टकराया
,मात कभी ना खाई जिसने
वक्त़ के आगे उसका सर भी
हमनें आज झुका देखा है
मुट्ठी से रेती सा सरका हर पल जो था साथ गुज़ारा
जबसे बिछड़े वक्त़ वहीं
पर सुबहो-शाम रुका देखा है
भूला भटका सा दीवाना लोग जिसे पागल कहते थे
बस उसके ही दिल में
हमनें इक मासूम छुपा देखा है
कैसा सीधा-साधा था वो
,बच्चों सा भोला दिखता था
वक्त़ के हाथो टूटा होगा
,उसके हाथ छुरा देखा है
दीप्ति मिश्र
12.4.95 - 28.4.95
दीप्ति मिश्र
12.4.95 - 28.4.95