Wednesday 2 March 2016

इतिहास


कल तक मैं वर्तमान थी ...
आज इतिहास हो गई ...
वो इतिहास,जो खो गया 
अनेक इतिहासों के बीच !!
काश कोई ढूंढ ले मुझे भविष्य में
और बन जाऊँ मैँ वर्तमान !!

11.7.2015
1.49 pm

अच्छा - बुरा


तुम बहुत अच्छी हो
मैं तुम्हारे योग्य नहीं
उसने कहा, पलटा
और चला गया....!
तुम बुरे नहीं हो 
मैं कहना चाहती थी
उसने सुना ही नहीं ...!!

23.11.2015
6.6pm

क्यूपिड





सुनो, ये जो तुम प्रेम का देवता बन कर 
सबको प्यार बॉंटते फिरते हो ,
सबका ख़ालीपन भरते हो ,
क्या मिलता है तुम्हें ??
सन्तुष्टि !!

फिर क्यूँ इतने बेचैन हो तुम ?
सच-सच बताना 
भीतर से कितने रीते हो तुम ?
तुम सबके हो ....
कोई तुम्हारा है क्या ?

प्रेम की धुन में ... 
तुमने सोचा ही नहीं ...
कि प्रेम बॉंटते-बॉंटते 
ख़ुद ही बँटजाओगे तुम !
और तुम्हारे पास
ऐसा कुछ भी नहीं बचेगा 
जिसे तुम अपना कह सको !!

लोग तुम्हारे पास आते हैं 
संवेदना के पुष्प चढ़ाते हैं 
तुमसे प्रेम का अनुदान लेते हैं 
और ह्रदय में नई स्फ़ूर्ति भर
चलदेते हैं अपने साथी के पास !
तुम फिर जहॉं के तहॉं ...
अकेले, घनघोर अकेले रह जाते हो !!

क्यूँ बनना चाहा तुमने देवता ?
अगर इन्सान ही वने रहते 
तो क्या पता ..
किसी एक के हो जाते 
किसी एक को पा जाते 
एक हो जाते !!!

15.2.2016
1.50pm

विचार - धारा


मेरी विचारधारा उसकी विचारधारा से
मेल नहीं खाती....
इस लिये -
उसने मुझे स्वयं से काट कर अलग कर दिया,
क्योंकि - 
उसके साथ उसकी दुनिया है !
जिसके प्रति -
वो जवाबदेह है !

उसकी विचारधारा मेरी विचारधारा से
मेल नहीं खाती....
किन्तु मैं उसे स्वयं से काट कर अलग नहीं कर सकी 
क्योंकि
मेरी दुनिया " वो " है
मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं !!!

4.11.2015
4.40pm

थोड़ी देर



बात जाने किस मोड़ पर पहुँच गई थी
कि बात करते-करते ...
अचानक वो चुप हो गया !
फिर कहा -
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ ।

मैं फ़ोन का रिसीवर हाथ में लिए 
देखती रही झिलमिलाते हुए तारों को
और ...
उलझाए रही अपनेआप को 
इधर-उधर की बातों में...
धीरे-धीरे ...
"थोड़ी देर" सरकते-सरकते
"बहुत देर" में बदल गई !

झपकी आई ही थी
कि फ़ोन घनघना उठा..
मैंने सकपका कर कहा 
ह..हलौ 
उसने कहा - 
सौरी... ऑंख लग गई थी..औफ़िस में हूँ 
थोड़ी देर में कॉल करता हूँ।

सोच रही हूँ ..
ऑंख खोल दूँ !!
या ...
बंद ही रहने दूँ !!!!

22.1.2016
11.15am

ढ़ाई आखर


सिर्फ़ ढ़ाई आखर सुने
और....
तड़तड़ा कर टूट गए सभी टाँकें !
घाव जो भरा भी नहीं था
फिर से हरा हो गया !!
सुना था ज़हर,ज़हर को काटता है
आज पता चला ...
प्रेम,प्रेम को मारता है !!!

12.2.2016
12.10pm

सपने


मेरे सपने बहुत टूटते थे ..
भर-भर के देखती जो थी !!
अब नहीं टूटते ..
सोना जो छोड़ दिया !!
अरे नहीं ,
सपनों से पीछा नहीं छूटा ,
अब भी देखती हूँ ..
भर-भर के देखती हूँ..
खुली आँखों से ....!!
अब
आनन्द ही आनन्द है
न नींद टूटती
न सपने !

24.7.2015
11.15 AM