गन्तव्य
शांत, शीत, श्वेत, सघन
–
शिखर
पर स्थित थी वह .
निर्विकार
! निर्विचार !
जाने
किसने उसे बता दिया –
तुम्हारे
जीवन का सार है – “सागर”
शांत
चित्त उद्वेलित हुआ
विचार
और विकार की ऊष्मा पा –
पिघलने
लगी बर्फ़ की चट्टान.
जन्मी
एक आस
उपजा
एक विश्वास
ज्ञात
हुआ एक लक्ष्य –
सागर
! सागर ! सागर
!
उसे
सागर तक जाना था
सागर
को पाना था
सागर
हो जाना था .
बहुत
रोका गया, टोका गया
बताया
गया उसे कि –
शिखर
से धरा और
धरा
से अतल गहराइयों तक
झुकते
चले जाने की यात्रा
बहुत
जटिल, बहुत दुरूह
और
बहुत पीड़ादायक है.
किन्तु
उसे तो –
लौ
लगी थी अपने “सागर” की
उसका
लक्ष्य था सागर
उसका
गन्तव्य था सागर
उसका
सत्य था सागर
उसका
सर्वस्व था सागर.
बस
फिर क्या था –
शक्ति, विश्वास
और आस्था बटोर
बह
चली वह –
हरहराती, मदमाती
लहराती, बलखाती
हरयाली
बिखेरती,
प्यासों
की प्यास बुझाती,
तप्तों
का ताप मिटाती
बहती
जाती निर्बाध गति से
नन्ही
सी जालधार
सागर
को पाने
बिना
ये जाने
कि
सागर कहाँ है ?
राह
में मिला उसे जल-प्रपात
धारा
ने पूछा –
क्या
तुम सागर हो ?
उत्तर
मिला –
नहीं
मैं सागर नहीं हूँ ,
सागर
होना चाहता हूँ .
सुना
है बहुत दुरूह है सागर होना
भय
लगता है मुझे –
कि
सागर तक पहुँचने से पहले ही
कहीं
मैं सूख न जाऊँ.
इसी
लिए यात्रा आरम्भ नहीं कर पाता
और
जहाँ का तहाँ खड़ा हूँ.
क्या
तुम मेरी मदद करोगी ?
निर्भय, निर्भीक
और हठी जलधार ने
पल
भर कुछ सोचा फिर कहा –
चलो
मेरे साथ .
कुछ
क्षण पश्चात् –
जल-प्रपात
कहीं नहीं था
नन्ही
सी जलधार विस्तृत हो –
“नदी” बन
चुकी थी !
अबाध
गति से बढ़ रही थी वह
सागर
को पाने
बिना
ये जाने
कि
सागर कहाँ है ?
कभी
भी, कहीं भी, किसी
भी
मोड़
पर मुड़ जाती थी वह
यह
सोच कर कि –
शायद
सागर यहाँ हो !
हर
मोड़, हर गाम, हर
ठौर
उसे
मिला –
एक
और जल
एक
और धारा
एक
और झरना
एक
और नद
एक
और त्वरा
एक
और उद्वेग
एक
और उफान
सब
के सब सागर की खोज में थे .
एक-एक
कर –
समाहित
होते गए सब उसमें
और
बढ़ता चला गया
नन्ही
सी नदी का विस्तार !
बहते-बहते
रुक गई है वह,
थम
गई है वह ,
नहीं
– थकी नहीं है वह
किन्तु
जहाँ पहुँच गई है
उके
आगे कुछ शेष नहीं है.
अपने
चारों ओर बह-बह कर
लौटना
पड़ता है उसे –
बार-बार
स्वयं में !
बहत
गहरी, बहुत विस्तृत, बहुत
स्थिर
कितु
बहुत बेचैन है वह
बार-बार
पूछती है –
सागर
कहाँ है ?
सागर
कहाँ है ?
कहाँ
है सागर ?
कोई
उसे बता क्यों नहीं देता –
वह
सागर हो गई है
वह
सागर हो गई है !!
दीप्ति मिश्र
15.4.2002
दीप्ति मिश्र
15.4.2002
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