मुझे खिन्न देख कर --
मेरी तस्वीर मुझसे पूछ बैठी--
तुम अपने घर में अजनबी की तरह क्यों रहती हो ?
मैनें खीझ कर कहा --
क्यों कि मैं इन्सान हूँ दीवार पर टँगी तस्वीर नहीं,
कि एक बार जहाँ टाँग दिया गया वहीं टँग गई!
शांत तस्वीर कुछ नहीं बोली
हमेशा की तरह मुस्कुराती रही
मेरे जी में आया --
मेरे जी में आया --
अपनी तस्वीर में समा जाऊँ
घर न सही दीवार तो अपनी होगी !!!!
2 comments:
क्यों कि मैं इन्सान हूँ दीवार पर टंगी तस्वीर नहीं,
कि एक बार जहाँ टांग दिया गया वहीं स्थित हो गई!
बेहतरीन... निशब्द करते शब्द...
निशब्द तो आपनें मुझे कर दिया!शुक्रिया मोनिका जी .
Post a Comment