Thursday 11 April 2013

दिल की बात



ग़ज़ल  


 दिल  की  बात  ज़ुबां  तक  लाएं ये हमको मंज़ूर नहीं
उसको  रुसवा  कर दें ये  तो  चाहत का  दस्तूर  नहीं

समझा  कर  दीवाने  दिल को  सब्र किये  हम बैठे  हैं
लेकिन  तुमसे  ना मिल पाएं  इतने तो  मजबूर  नहीं

तोड़  के  सारी  रस्में  ऐसी  एक कहानी लिख दें हम
लैला - मजनू  के क़िस्से  भी  जितने थे मशहूर  नहीं

इस दूरी से शिक़वा क्या जब दिल की दिल सुन लेता है
लाख  जुदा  हों जिस्म हमारे  हम तो फिर भी दूर नहीं

बिसरा  कर हम इस दुनिया को  अपनी धुन में रहते हैं
लेकिन  तुमको  ना  पहचानें  इतने  तो मग़रूर   नहीं  

दीप्ति मिश्र 
15.6.95 - 24.6.95

हम न मानेगें


ग़ज़ल  


हम न मानेगें  हमें अब शौक़  से  इलज़ाम  दें
क्या ज़रूरी है कि हर रिश्ते को हम इक नाम दें

सिसिला  चलता  रहे बस इस तरह ही उम्र भर
क्या ज़रूरी है कि  हर आग़ाज़  को अंजाम  दें

है निहायत  ही  निजी पाकीज़गी  हर  एक की
क्या  ज़रूरी है सफ़ा  इसकी  सुबहो  शाम  दें

गल्तियाँ   हसे  हुईं  आख़िर  तो हम इन्सान हैं
क्या  ज़रूरी है कि मजबूरी  का उनको  नाम  दें

खीच कर ले आएगी अपनी कशिश उस शख्स़ को
क्या  ज़रूरी  है  उसे  हर  बार  हम  पैग़ाम  दें

बिन  ख़रीदे  ही  हमें  खु़शियाँ मिलें ऐसा भी हो
क्या ज़रूर है कि  उनका हम  सदा  ही दाम  दें

दीप्ति मिश्र
20.1.95 - 27.1 95 

Saturday 29 September 2012

DIPTI MISRA IN BHEL MUSHAYRA BHOPAL

Tuesday 25 September 2012

Saturday 22 September 2012

Wednesday 5 September 2012

माँ


                        माँ


बच्चों को लाड़-प्यार से पाल-पोस कर
बड़ा तो कर दिया उसने लेकिन
खुद वहीं अटक कर रह गई !!

आज भी बच्चों के साथ बच्चा बन कर
खेलने को ललक उठती है !!

झूठ-मूठ में रूठ जाती है
कि बच्चे मनाएंगे !

झूठ-मूठ में रोने लगती है
कि बच्चे चुपाएंगे !

झूठ-मूठ में डर जाती है
कि बच्चे सीने से लिपटाएंगे

लकिन बच्चे...
न मनाते हैं
न चुपाते हैं
 ना ही सीने से लिपटाते हैं 

वो अब समझदार हो गए हैं जानते हैं
 कि ये माँ का खेल है
सब झूठ-मूठ है !

बस माँ ही नहीं जानती
कि सब झूठ-मूठ है
झूठ–मूठ !!  

दीप्ति मिश्र  
5.9.2012

Tuesday 7 August 2012

परिचय : दीप्ति मिश्र : 

दीप्ति मिश्र की एक ग़ज़ल का रदीफ़ "है तो है" इतना मशहूर हुआ कि आज वो दीप्ति मिश्र का दूसरा नाम बन गया है -

वो नहीं मेरा मगर उस से मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों -रिवाजों से बगावत है तो है


उतर प्रदेश के एक छोटे से कस्बेनुमा शहर लखीमपुर - खीरी में दीप्ति मिश्र का जन्म श्री विष्णु स्वरुप पाण्डेय के यहाँ 15 नवम्बर 1960 को हुआ। गोरखपुर से हाई स्कूल करने के बाद दीप्ति जी ने बी.ए. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से किया। मेरठ यूनवर्सिटी से एम्.ए किया।

सन् 1997 में दीप्ति मिश्र का पहला काव्य संकलन "बर्फ़ में पलती हुई आग " मंज़रे -आम पे आया। इस शाइरी में मुहब्बत के रंगों के साथ औरत के वजूद की संजीदा फ़िक्र भी थी। दीप्ति मिश्र की शाइरी में बेबाकी, सच्चाई और साफगोई मिसरी की डली की तरह घुली रहती है।

दुखती रग पर उंगली रखकर पूछ रहे हो कैसी हो 
तुमसे ये उम्मीद नहीं थी ,दुनिया चाहे जैसी हो 


दीप्ति मिश्र दूरदर्शन और आकाशवाणी से अधिकृत अदाकारा थी। अभिनय के शौक़ के चलते 2001 में मुंबई आ गई। राजश्री प्रोडक्शन के चर्चित टी.वी सीरियल "वो रहने वाली महलों की " के सभी थीम गीत दीप्ति मिश्र ने लिखे। 

औरत-मर्द के रिश्तों की पड़ताल दीप्ति जी ने बड़ी बारीकी से की है और उसपे अपनी राय भी बे-बाकी से दी जो उनके शे'रों में साफ़ देखने को मिलता है।

दिल से अपनाया न उसने ,ग़ैर भी समझा नहीं 
ये भी इक रिश्ता है जिसमें कोई भी रिश्ता नहीं 

तुम्हे किसने कहा था ,तुम मुझे चाहो, बताओ तो 
जो दम भरते हो चाहत का ,तो फिर उसको निभाओ तो 

दीप्ति मिश्र का दूसरा काव्य संकलन 2005 में आया जिसका नाम वही उनकी ग़ज़ल का रदीफ़ जो दीप्ति का दूसरा नाम अदब की दुनिया में बन गया "है तो है "। इसका विमोचन पद्म-विभूषण पं.जसराज ने किया सन् 2008 में दीप्ति मिश्र का एक और संकलन उर्दू में आया "बात दिल की कह तो दें "।
दीप्ति मिश्र बहुत से टेलीविजन धारावाहिकों में अभिनय किया है जिसमें प्रमुख है जहाँ पे बसेरा हो , कुंती, उर्मिला, क़दम, हक़ीक़त , कुमकुम, घर एक मंदिर और शगुन। तनु वेड्स मनु , एक्सचेंज ऑफर और साथी -साथी संघाती(भोजपुरी ) फिल्मों में भी दीप्ति मिश्र ने अपने अभिनय किया है। आने वाली फ़िल्म "पत्थर बेज़ुबान " के तमाम गीत दीप्ति मिश्र ने लिखे। दीप्ति मिश्र की ग़ज़लों का एक एल्बम "हसरतें " भी आ चुका हैजिसे गुलाम अली और कविता कृष्णमूर्ती ने अपनी आवाज़ से नवाज़ा है .

Devmani Pandey devmanipandey@gmail.com