Monday, 30 March 2015

मैं दिल से मजबूर हूँ



मैं  दिल से मजबूर हूँ अपने  और  वो दुनियादारी से  
दिल - दुनिया से जूझ रहे  हैं  दोनों  बारी - बारी  से 

रिश्तों के इस  खेल में इक दिन दोनों की ही हार  हुई  
वो  अपनी   चालों  से  हारा , मैं अपनी  दिलदारी से  

दिल से बाहर कर के मुझको अच्छा सा घर सौंप दिया  
उसने  अपना   फ़र्ज़   निभाया  कितनी  ज़िम्मेदारी  से  

मेरा  उसका  रिश्ता  जैसे   ताला  किसी  ख़ज़ाने  का
जिसको  देखो  काट  रहा  है  अपनी-अपनी  आरी से  

चपके -  चुपके  उसने  मेरे   सारे   रिश्ते  बेच   दिए  
जैसे  उसका  रिश्ता  हो  कुछ रिश्तों के  व्यापारी से 

चोरी - चोरी  चुपके - चुपके   सारे   रिश्ते  बेच  दिए  
ख़ूब  कमाई  की  है उसने  ख़ालिस चोर  बाज़ारी  से

दीप्ति मिश्र
20.12.2014