Monday 28 May 2012

कहॉं दर्द है कुछ ख़बर

 

कहाँ  दर्द   है  कुछ  ख़बर  ही   नहीं   है 
कि  अब  दर्द का कुछ असर  ही  नहीं है

मेरे   घर  में   मेरी  बसर  ही   नहीं   है 
जिसे   घर  कहूँ  ये  वो  घर  ही  नहीं है

मैं किस आस्ताँ पर करूँ  जा के सजदा 
झुके  जिसपे  सर  ऐसा  दर  ही नहीं है 

भरोसा   है उसके  ही  वादे  पे  मुझको 
मुकरने   में  जिसके कसर ही  नहीं है 

ये  किस मोड़ पर आ गई ज़िन्दगानी
कहानी   में  ज़ेरो -ज़बर  ही   नहीं   है 

दीप्ति मिश्र 

2 comments:

ओमप्रकाश यती said...

भरोसा है उसके ही वादे पे मुझको
मुकरने में जिसके कसर ही नहीं है।
.......दीप्ति जी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई ।

Unknown said...

बहुत-बहुत शुक्रिया यती जी !