Tuesday 7 August 2012
Thursday 19 July 2012
Saturday 14 July 2012
Monday 28 May 2012
कहॉं दर्द है कुछ ख़बर
कहाँ दर्द है कुछ ख़बर ही नहीं है
कि अब दर्द का कुछ असर ही नहीं है
मेरे घर में मेरी बसर ही नहीं है
जिसे घर कहूँ ये वो घर ही नहीं है
मैं किस आस्ताँ पर करूँ जा के सजदा
झुके जिसपे सर ऐसा दर ही नहीं है
भरोसा है उसके ही वादे पे मुझको
मुकरने में जिसके कसर ही नहीं है
ये किस मोड़ पर आ गई ज़िन्दगानी
कहानी में ज़ेरो -ज़बर ही नहीं है
दीप्ति मिश्र
Thursday 17 May 2012
अपूर्ण
अपूर्ण
हे सर्वज्ञाता ,सर्वव्यापी ,सार्वभौम !
क्या सच में तुम सम्पूर्ण हो ?
"हाँ "कहते हो तो सुनों -
सकल ब्रम्हांड में
यदि कोई सर्वाधिक अपूर्ण है
तो वो "तुम" हो !!
होकर भी नहीं हो तुम !!!
बहुत कुछ शेष है अभी ,
बहुत कुछ है जो घटित होना है !
उसके बाद ही तुम्हें सम्पूर्ण होना है!
हे परमात्मा !
मुझ आत्मा को
विलीन होना है अभी तुममें!
मेरा स्थान रिक्त है अभी तुम्हारे भीतर
फिर तुम सम्पूर्ण कैसे हुए ?
तुममें समाकर "मैं"
शायद पूर्ण हो जाऊं !
किन्तु "तुम" ?
"तुम" तो तब भी अपूर्ण ही रहोगे
क्योंकि -
मुझ जैसी -
जानें कितनी आत्माओं की रिक्तता से
भरे हुए हो "तुम" !
जाने कब पूर्ण रूप से भरेगा
तुम्हारा ये रीतापन -
ये खालीपन !!
जाने कब ?
जाने कब ?
दीप्ती मिश्र
Subscribe to:
Posts (Atom)