Wednesday 3 August 2011
Tuesday 2 August 2011
दिल से अपनाया न उसने
दिल से अपनाया न उसने ,गैर भी समझा नहीं
ये भी इक रिश्ता है जिसमें कोई भी रिश्ता नहीं
ये बला के पैंतरे, ये साजिशें मेरे खिलाफ
राएगाँ हैं , मैं तुम्हारे खेल का हिस्सा नहीं
ऐ मेरी खानाबदोशी ! ये कहाँ ले आई तू
घर में हूँ मैं और मेरा घर मुझे मिलता नहीं
सब यही समझे, नदी सागर से मिल कर थम गई
पर नदी तो वो सफ़र है जो कभी थमता नहीं
वक्त बदला ,लोग बदले , मैं भी बदली हूँ मगर
एक मौसम मुझमें है जो आज तक बदला नहीं
एक मौसम मुझमें है जो आज तक बदला नहीं
दीप्ति मिश्र
Monday 7 February 2011
घर
मुझे खिन्न देख कर --
मेरी तस्वीर मुझसे पूछ बैठी--
तुम अपने घर में अजनबी की तरह क्यों रहती हो ?
मैनें खीझ कर कहा --
क्यों कि मैं इन्सान हूँ दीवार पर टँगी तस्वीर नहीं,
कि एक बार जहाँ टाँग दिया गया वहीं टँग गई!
शांत तस्वीर कुछ नहीं बोली
हमेशा की तरह मुस्कुराती रही
मेरे जी में आया --
मेरे जी में आया --
अपनी तस्वीर में समा जाऊँ
घर न सही दीवार तो अपनी होगी !!!!
Monday 16 August 2010
ऐसा नहीं कि उनसे
ऐसा नहीं कि उनसे मुहब्बत नहीं रही
बस ये हुआ कि साथ की आदत नहीं रही
दुनिया के काम से उसे छुट्टी नहीं मिली
हमको भी उसके वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही
कुछ उसको इस जहाँ का चलन रास आ गया
कुछ अपनी भी वो पहले- सी फ़ितरत नहीं रही
उससे कोई उमीद करें भी तो क्या करें
जिससे किसी तरह की शिकायत नहीं रही
दिल रख दिया है ताक पे हमनें निकाल कर
लो अब किसी भी किस्म की दिक्क़त नहीं रही
दीप्ति मिश्र
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