Wednesday, 15 February 2012

विचित्र

 

बहुत विचित्र थी वो -
बिल्कुल जल में कमल  की तरह ...
जल ,जो उसका जीवन था 
 कभी सिक्त नहीं कर सका उसे !
जल-कण कुछ पल को 
पंखुरियों पर ठहरते -
फिर ढलक जाते !!

बहत विचित्र थी वो -
बिलकुल उस बंजारन की तरह ...
जिसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं !
एक पल यहाँ ,दूसरे पल वहाँ ...
तो तीसरे पल ... जानें कहाँ !!

बहुत विचित्र थी वो 
बिलकुल उस पंछी की तरह ...
जिसकी उड़ान के लिए -
आकाश छोटा था !
वो उड़ान भारती गई ....
 घोसला छूटता गया !!

बहुत विचित्र थी वो -
न आसक्त ,न विरक्त !
न तृप्त ,न अतृप्त !
न बंदी ,न मुक्त  !

जाने क्या खोजती थी वो ?
जाने क्या था ...
जो नहीं था ??

किसी ज्ञानी नें उससे पूछा  -
क्यों भटकती हो ?
उसनें कहा --पता नहीं !
ज्ञानी--अज्ञानी हो तुम .
वो -- हो सकता है !
ज्ञानी -- क्या चाहती हो ?
वो -- यही तो जानना हैं !
ज्ञानी -- मेरी शरण में आजाओ 
सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाएँगे .
वो -- लेकिन प्रश्न तो -
आप मुझसे पूछ रहे हैं !
मैंने  तो कोई प्रश्न पूछा ही नहीं !!
ज्ञानी -- पूछोगी 
पहले मुझे अपना गुरू बनाओ .
वो-- ठीक है 
किन्तु एक समस्या है !
ज्ञानी -- क्या ?
वो - आपको "गुरू" बनाने के लिए 
मुझे "लघु" बनना पड़ेगा !  

ज्ञानी निरुत्तर था 
और 
वो निश्चिन्त !!!!!!!

दीप्ती मिश्र


Tuesday, 8 November 2011

मैंने अपना हक माँगा था

  

मैंने अपना   हक  माँगा था ,वो  नाहक ही  रूठ गया 
बस  इतनी-सी बात  हुई और साथ हमारा  छूट गया 

वो मेरा है आखिर  इक दिन मुझको मिल ही जाएगा 
मेरे  मन  का एक भरम था ,कब तक रहता टूट गया 

दुनिया भर की शान-ओ-शौकत ज्यूँ की त्यूं ही धरी रही
मेरे  बैरागी  मन   में  जब  सच  आया ,सब   झूठ  गया

क्या  जाने  ये आँख  खुली  या फिर  से कोई भरम 
हुआ
अबके  ऐसा  उचटा  ये दिल , कुछ  छोड़ा,कुछ छूट गया

लड़ते - लड़ते  आखिर इक दिन पंछी  ही  की जीत हुई 
प्राण-पखेरू  नें  तन  छोड़ा , खाली  पिंजरा   छूट  गया 

दीप्ती मिश्र 

Thursday, 20 October 2011

DIPTI MISRA IN AJMER MUSHAYRA

Monday, 29 August 2011

HAPPY BIRTHDAY MUMMA

Wednesday, 24 August 2011

BAHUT KHOOB - Dipti Mishra

Wednesday, 3 August 2011