Saturday, 29 September 2012
Tuesday, 25 September 2012
Saturday, 22 September 2012
Wednesday, 5 September 2012
माँ
माँ
बच्चों को लाड़-प्यार से पाल-पोस कर 
बड़ा तो कर दिया उसने लेकिन 
खुद वहीं अटक कर रह गई !!
आज भी बच्चों के साथ बच्चा बन कर
खेलने को ललक उठती है !!
झूठ-मूठ में रूठ जाती है 
कि बच्चे मनाएंगे !
झूठ-मूठ में रोने लगती है 
कि बच्चे चुपाएंगे !
झूठ-मूठ में डर जाती है 
कि बच्चे सीने से लिपटाएंगे 
लकिन बच्चे... 
न मनाते हैं 
न चुपाते हैं 
 ना ही सीने से लिपटाते हैं  
वो अब समझदार हो गए हैं जानते हैं
 कि ये माँ का खेल है
सब झूठ-मूठ है !
बस माँ ही नहीं जानती 
कि सब झूठ-मूठ है 
झूठ–मूठ !!  
दीप्ति मिश्र  
5.9.2012
5.9.2012
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